🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*#पं०श्रीजगजीवनदासजीकीअनभैवाणी*
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*श्रद्धेय श्री @महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ @Premsakhi Goswami*
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*८. लै कौ अंग ~ १३/१६*
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कहि जगजीवन रांमजी, बिन मसि७ लेखनि८ दोति९ ।
उर कागद अक्षर लिखै, तहां बिराजै जोति ॥१३॥
(७. मसि - स्याही) (८. लेखनि - कलम) (९. दोति - दवात)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि बिना स्याही कलम व दवात के ही हृदय रुपी कागज पर जो राम नाम लिखता है वहीं प्रभु विराजते है ।
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धसै कूप मंहि नीर कौ, ते हरि कहिये लाव१ ।
कहि जगजीवन रांम कहै, भर्या देख करि आव ॥१४॥
(१. लाव - कूए से जल निकालने के लिये मोटी रस्सी)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हम कुंए में रस्सी डालते हैं तो यदि जल कुए में होगा तभी तो वह रस्सी जल लायेगी इसी प्रकार यदि हमारे अतंर में संस्कार होंगे तभी तो अभ्यास रुपी रस्सी परिणाम देगी ।
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कहि जगजीवन नांम मंहि, रांम करौ मोहि लीन ।
प्रांण प्रेम मंहि झूलि रहै, ज्यूं जल मांही मीन ॥१५॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि, हे प्रभु, आप मुझे राम में ही लीन रखें, वहां मेरे प्राण प्रेम पूर्वक आनंदित रहेंगे जैसे जल में मछली आनंदित रहती है ।
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यत्र२ ग्यांनं तत्र ध्यांनं, तत्र लयं प्रवरतते ।
कहि जगजीवन लयं रांमं, अबिगत चित्त वरतते२ ॥१६॥
(२-२. साधक को ध्यान प्राप्त होने पर ही उसकी लय में प्रवृत्ति होती है तथा लय होने पर उसका चित्त स्थिर हो पाता है ॥१६॥)
संतजगजीवन जी कहते है कि जहाँ ज्ञान वहां ही ध्यान वहीं जीव लय में प्रवृत रहता है । जीवात्मा जब लय में प्रवृत होता है तो उसका चित्त स्थिर होता है ।
(क्रमशः)
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