बुधवार, 14 अक्टूबर 2020

*८. लै कौ अंग ~ २५/२८*

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*श्रद्धेय श्री @महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ @Premsakhi Goswami*
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*८. लै कौ अंग ~ २५/२८*
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अपजस५ आंन उपाइ सब, जस हरि नांव निवास ।
रांम सुमिर जन लीन रहै, सु कहि जगजीवनदास ॥२५॥
{५. अपजस - सांसारिक अन्य साधन अपकीर्ति(निन्दा) के ही देनेवाले हैं} 
संतजगजीवन जी कहते हैं कि संसार के सारे प्रयास अपयश के कारक हैं । और प्रभु स्मरण यश देने वाला है । हरि स्मरण से जन मग्न रहते हैं । उन्हें चिंता से मुक्ति मिलती है ।
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जुगल जोग६ हरि नां कह्या, एक सुमिर ल्यौ लाइ ।
कहि जगजीवन रांम लहै, रांमां राज७ विलाइ ॥२६॥
(६. जुगल जोग - एक समय में दो के साथ सम्बन्ध)
{७. रामां राज - स्त्री-राज्य(सांसारिक प्रकृति)}
संतजगजीवन जी कहते हैं कि एक साथ माया और ईश्वर दोनों नहीं चलते अतः एक प्रभु का ही स्मरण करणीय है । हमें राम स्मरण को रख कर माया का संग छोड़ना है ।
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प्राण मगन मन आतमां, गगन बिगस मिलि मांहि ।
कहि जगजीवन बिलै तन, सनमुख परस्यां सांइ८ ॥२७॥
(८. परस्यां सांइ-प्रभु परमात्मा का साक्षात्कार कर लेने पर)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हमारे प्राण तो गगन हैं व मन आत्म है, जो उल्लास पूर्वक गगन में समाहित होती है और जब वो परमात्मा का सान्निध्य पा लेती है तो देह गुण विलीन हो जाते हैं ।
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कहि जगजीवन लीन रहै, ह्रिदै कंवल मंहि रांम ।
अंतरजामी होइ बिचारै, कहै सुनै जे नांम ॥२८॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हृदय रुपी कमल में राम जी समाये हैं । वे अंतरयामी स्मरण करनेवाले व भजन सुननेवाले सभी का विचार करते हैं ।
(क्रमशः)

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