मंगलवार, 13 अक्टूबर 2020

*अजामिल की पद्य टीका*

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*हरि तरुवर तत आत्मा, बेली कर विस्तार ।*
*दादू लागै अमर फल, कोइ साधू सींचनहार ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ बेली का अंग)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,* 
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान* 
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*अजामिल की पद्य टीका* 
*मात पिता सुत नाम धर्यो,*
*अजमेल सु साँच भयो तज नारी ।*
*पान करै मद दूरि भयो सुधि१,*
*गारि२ दियो तन वाहि निहारी ॥*
*हाँसिन में पठये जन दुष्टन,*
*आय रहे शुभ पौरि३ सँवारी ।*
*संत रिझाय लिये करि सेवन,*
*नाम नरायण बालक पारी४ ॥२५॥*
माता पिता ने पुत्र का नाम अजामिल रक्खा था, सो वह सच्चा हो गया । उसने अपनी धर्मपत्नी ब्राह्मणी का त्याग कर दिया और अजा(माया, अविद्या) की अन्तिम सीमा शुद्री वेश्या से जा मिला अर्थात् उसके साथ रहने लगा, मद्य-पान करने लगा, इससे उसकी बुद्धि१ नष्ट हो गई । उसने उस वेश्या के रूप को देख देखकर अपने शरीर की सुन्दर युवावस्था नष्ट२ कर दी । 
एक समय विचरते हुये कुछ संत अजामिल के ग्राम में आ गये थे, उन्होंने किसी साधु सेवी भक्त का घर पूछा, तब दुष्ट जनों ने हँसी में अजामिल का घर बता दिया । संत वहां आये और सुन्दर साफ सुधरे हुये द्वार३ पर ठहर गये । संतों के दर्शन से अजामिल के मन में सात्त्विकी श्रद्धा प्रकट हो गई । इससे उसने सेवा द्वारा संतों को प्रसन्न कर लिया । 
संत जाने लगे तब अजामिल और वेश्या ने श्रद्धा पूर्वक प्रणाम किया । संतों ने प्रसन्नता से आशीर्वाद देते हुये कहा- “इस गर्भवती के पुत्र होगा, उस बालक का नाम तुम नारायण रखना४ ।” यह कहकर संत तो विचर गये । (अजमेल, पाठ छन्द नियम की रक्षा के लिये दिया गया है ।)
(क्रमशः)

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