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*#श्रीदादू०अनुभव०वाणी, द्वितीय भाग : शब्द*
*राग भैरूँ २४(गायन समय प्रात:काल)*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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३८९ - **नाम शूरातन** । मकरनन्द ताल
निर्भय नाम निरंजन लीजै,
इन लोगन का भय नहिं कीजै ॥टेक॥
सेवक शूर शँक नहीं मानै,
राणा राव रँक कर जानै ॥१॥
नाम निशँक मगन मतवाला,
राम रसायन पिवै पियाला ॥२॥
सहजैं सदा राम रँग राता,
पूरण ब्रह्म प्रेम रस माता ॥३॥
हरि बलवन्त सकल सिर गाजै,
दादू सेवक कैसैं भाजै ॥४॥
नाम चिन्तन करने में शौर्यता की प्रेरणा कर रहे हैं - इन साँसारिक लोगों का कुछ भी भय न करके निर्भयता पूर्वक निरंजन - राम का नाम चिन्तन कर ।
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भक्त वीर किसी का भी भय न मान कर, महाराणा, और राजा आदि को भी रँक समान जानकर निर्भयता से राम - चिन्तन में निमग्न रहता है । इस प्रकार राम - भक्ति रसायन का प्याला पान करके मतवाला बना रहता है ।
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सदा स्वाभाविक रीति से राम - रँग में अनुरक्त रहता है । जो ऐसे पूर्ण ब्रह्म के प्रेम - रस में मस्त है, वह भक्त किसी से भयभीत होकर भजन से कैसे भागेगा ?
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कारण - जो सबके शिर पर गर्जना करने वाले अपार बल सम्पन्न हरि हैं, वे उसके सदा सहायक हैं, तब उसे किसका भय हो ।
(क्रमशः)
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