शुक्रवार, 9 अक्टूबर 2020

*(“पंचमोल्लास” १०/१२)*

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स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्‍वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“पंचमोल्लास” १०/१२)*
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*राजा ने कहा जो जाता वापस नहीं आता*
*राव पदम सिंध विस्मय होई,*
*जो जावे सो आवै न कोई ।*
*दासी दोई राव हजूरी,*
*आज्ञा मांगि चली है कूरी ॥१३॥*
राव पदमसिंघ को बहुत आश्‍चर्य और हैरानी हुई कि जो भी संतों की हानी नुकसान करने जाता है वह वापिस नहीं आता राव की हजूरी में दो दासियां दूतियां रहती थी उन्होंने संतों को नुकसान पहुंचाने की राजा से आज्ञा लेकर संतों को मारने चली ॥१३॥
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*दासीयों ने कहा हमारे में सब कला है*
*अबै नृप कौं दुख निवारै,*
*सकल कला है हमरे सारे ।*
*टूंणा टांमण विद्या चारूं,*
*मंत्र जंत्र हजूरि हमारू ॥१४॥*
दूतियां कहती है कि अब हम राजा के दु:ख व कष्ट का निवारण करेंगी क्योंकि हमारे पास सब तरह की कलाऐं विशेषताएं हैं । टूंणा टामण चारों तरह की विदयाएं, मंत्र जंत्र सब हमारी इच्छा के अनुसार काम करते हैं ॥१४॥
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*चौसठि जोगणि वीर चलावैं,*
*तब वै मनिख कहां सो जावे ।*
*भैरों भूत अनेक उचारै,*
*निश्‍चै हमहू उनको मारे ॥१५॥*
दूतियां विचार करती है हम संतों पर चौसठ जोगणियां वीर हनुमान आदि का प्रयोग करेंगी तब वे मनुष्य कहां से हमारे चंगुल से निकलेंगें । भैरों भूत आदि अनेक देवताओं का प्रयोग कर निश्‍चित ही हम संतों को मार देंगी ॥१५॥
(क्रमशः)

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