रविवार, 22 नवंबर 2020

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🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#०दृष्टान्त०सुधा०सिन्धु* 🌷
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*ज्यों यहु काया जीव की, त्यों सांई के साध ।*
*दादू सब संतोषिये, मांहि आप अगाध ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ साधू का अंग)*
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साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*#०दृष्टान्त०सुधा०सिन्धु*, *संतोष*
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एक छोटे से गांव में संतों की मण्डली आई थी । सब को एक व्यक्ति भोजन नहीं करा सकता था । इसलिये योग्यता अनुसार सब घरों की एक-एक दो-दो बांट दिये । एक वृद्धा माता के हिस्से में एक संत आया । उसके घर में रोज खिलाने के लिये कुछ नहीं था । संत को देखकर वह हर्षित तो हुई, किंतु अन्न के नहीं होने से तुरंत रोने लगी । 
संत ने पूछा - रोती क्यों हो ? माता - मेरा अहो भाग्य की आप घर पर पधारे किंतु खेद है कि आज घर में खाने पीने की कोई वस्तु नहीं है । संत - माताजी, चिंता नहीं करो, थोड़ा सा जल गरम करके मुझे पिला दो । माता ने वैसा ही किया । संत जल पीकर गये कि उसके घर में खूब द्रव्य की वर्षा हुई । इससे सूचित होता है कि संतोषी का सम्मान करने से भी अति लाभ होता है । 
होत लाभ संतुष्ट का, करने से सम्मान ।
दिये गरम जल भी तुरंत, वर्षा द्रव्य महान ॥२६१॥

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