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🦚 #श्रीसंतगुणसागरामृत०२ 🦚
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स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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(“पंचमोल्लास” ४९/५१)
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*पदम सिंह नित पूजै माता,**सकल रैति को लैवे साथा ।*
*धरयाजू जैमल पूजे संतू,**हृदै मांहि वस्यो भगवन्तू ॥४९॥*
पदम सिंह प्रतिदिन अपनी सारी प्रजा को साथ लेकर माता देवी की पूजा करता था । और धरयाजू जैमल सदा संतों की पूजा करता था क्योंकि उसके मन में भगवान का निवास हो गया था ॥४९॥
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*आंन दैवकौ सीस न नावै,**राजा प्रजा सब ही ध्यावे ।*
**कथा समै यौं दुनिया आवै,**जेसा आभे अंबर छावै ॥५०॥*
धरयाजू जैमल संतों के, ब्रह्म के, अतिरिक्त किसी अन्य देवता को शीश नहीं झुकाता था इसी प्रकार राजा प्रजा दोनों ही संतों व ब्रह्म का ही ध्यान करते थे । संतों की कथा के समय दुनिया इस प्रकार उमड़कर अधिक संख्या में आती थी जिस प्रकार वर्षा रितु आकाश में बादल आकर छा जाते है ॥५०॥
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*राजा जैमल के चिन्ता*
*धरयाजुजैमल के चिंता भारी, लाग्यौ वैरजु भई खुवारी ।*
*संग्राम कीये हुवै आत्मघाता, बिन संग्राम न छाड़े माता ॥५१॥*
धरयाजु जैमल को यह बड़ी भारी चिंता हो गई कि पदमसिंघ के साथ उसकी पूजा पद्घति को लेकर बैर शत्रुता हो गई यही चिंता उसके दिल में घर कर गई । उसने सोचा लड़ाई करने से हम दोनों का विनाश हो जायेगा और बिना युंद्घ के पदमसिंघ माता की पूजा नहीं छोड़ेगा ॥५१॥
(क्रमशः)
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