🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#०दृष्टान्त०सुधा०सिन्धु* 🌷
*जब अंतर उरझ्या एक सौं, तब थाके सकल उपाइ ।*
*दादू निश्चल थिर भया, तब चलि कहीं न जाइ ॥*
*दादू मन सुध साबित आपणा, निश्चल होवे हाथ ।*
*तो इहाँ ही आनन्द है, सदा निरंजन साथ ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ मन का अंग)*
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साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*#०दृष्टान्त०सुधा०सिन्धु*, *मन*
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किसी घड़े में चींटा गिर पड़ता है तो वह घड़े में दौड़ने लगता है । किंतु घड़े में मिश्री का टुकड़ा डाल दिया जाय और वह चींटा को मिल जाय तो चींटा मिश्री को तज कर नहीं जाता । इसी प्रकार ब्रह्मतत्व की प्राप्ति होने पर मन भी कहीं नहीं जाता ।
तत्व प्राप्ति से चित्त यह, सहज ही रुक जात ।
घट चींटा तज सिता को, अन्य ओर नहिं जात ॥१८॥
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