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🦚 #श्रीसंतगुणसागरामृत०२ 🦚
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स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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(“पंचमोल्लास” ४३/४५)
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*सत्संग महिमा अपार है*
*कविलास और वैकुंठ में, जेतक सुख है सार ।*
*पलक एक सतसंग मैं, सुनें सु नाम उचार ॥४३॥*
शिव के निवास कैलाश में एवं विष्णु निवास वैकुंठ में जितना सुख का रहस्य प्राप्त होता है उतना एक पल के संतों के सत्संग से जब ब्रह्म ज्ञान होकर निरंजन राम का उच्चारण किया जाता है तब प्राप्त होता है ॥४३॥
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*सत्संग महिमा*
*मुक्ति नहीं सतसंग सम, का सुख कहूं गंभीर ।*
*अगम, अगाध, परिमित नहीं, सुख सागर समधीर ॥४४॥*
सत्संग के समान मुक्ति दाता कोई भी कार्य नहीं है सत्संग की गंभीरता और सुख के बारे में मैं क्या कह सकता हूं । वह सुख मुक्ति, अगम, अगाध है और उसकी कोई सीमा नहीं है वह ब्रह्म सुख आनंद का सागर है ॥४४॥
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*मुक्ति ग्रामी संत जन, करतन कीजे बार ।*
*सब कोई सरणां लीजियौ, वेगि उतारे पार ॥४५॥*
संत जन मुक्ति के रास्ते जाने वाले एवं ले जाने वाले होते हैं वे कृपा करके इस जीव को भवसागर से पार लगा देते हैं, हे संतों आप पापी धर्मी सभी को अपनी शरण में लेकर जल्दी ही भव सागर से पार उतार देना ॥४५॥
(क्रमशः)
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