🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*#पं०श्रीजगजीवनदासजीकीअनभैवाणी*
https://www.facebook.com/DADUVANI
*श्रद्धेय श्री @महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ @Premsakhi Goswami*
.
*८. लै कौ अंग ~ ४९/५२*
.
कहि जगजीवन स्रब सक्ति, जहां लग उतपति नाद ।
नाद निरंजन मिलि रह्या, हरि जन पाया स्वाद ॥४९॥
संतजगजीवन जी कहते है कि जहाँ शक्ति स्त्रोत है वहां ही अनहद नाद की उत्पत्ति है और जब नाद प्रभु तक पहुंच जाते हैं तो भक्त जन आनंदित होते हैं ।
.
कहै सुनै अरु करै नहीं, तब लग काची४ बात ।
कहि जगजीवन रांम बिन, जनम अकारथ५ जात ॥५०॥
{४. काची=मिथ्या(झूठी)} {५. अकारथ=अकार्य(=व्यर्थ, निष्प्रयोजन)}
संतजगजीवन जी कहते हैं कि जीव प्रभु की बात कहे सुने और करे कुछ भी नहीं तो जीव का जन्म व्यर्थ चला जाता है जीवन की सार्थकता यही है कि जैसा कहे वैसा ही आचरण करें तब ही दृढ या पक्की बात है अन्यथा बात कच्ची रहेगी ।
.
सहरग६ थैं नेड़ा७ सुणै, रोजा८ बांग९ निवाज१० ।
कहि जगजीवन जिआरत११, अल्लह आशिक राज ॥५१॥
(६. सहरग=स्वर्ग) (७. नेड़ा=समीप) (८. रोजा=उपवास) (९. बांग=उच्च स्वर से सम्बोधन) {१०. निवाज=नमाज (भगवत्स्तुति)} (११. जिआरत=तीर्थयात्रा)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि स्वर्ग से समीप ही स्थित प्रभु सभी धार्मिक कृत्य को शीघ्र देखते हैं चाहे वह व्रत हो स्मरण बांग हो पाठ हो, नमाज हो या भगवत्स्ति हो, या तीर्थाटन हो । संत कहते हैं कि ये सब करनेवाले को मोक्ष भले ना मिले पर स्वर्ग तो मिलेगा । अतः पाप कर्म से यह भी बहुत श्रेष्ठ है ।
.
अल्लह आशिक तबज्जै१, गवरत२ कवर३ जलाद४ ।
कहि जगजीवन सुखन सुंण, अल्लह राखै आद ॥५२॥
{१. तबज्जै=तबज्जुह(=ध्यान)} (२. गवरत=चुपके से) (३. कवर=काटना) (४. जलाद=कसाई)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि जिस जीवत्मा ने प्रभु को अपना प्रेमी बना लिया है वे उसकी बहुत परवाह करते हैं । चाहे काल रुपी जल्लाद कितनी ही कुशलता से मारना चाहे । वे ऐसी आड़ लगा कर बचा लेते हैं ।
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें