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🦚 #श्रीसंतगुणसागरामृत०२ 🦚
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स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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(“पंचमोल्लास” ५२/४)
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*राजा ने संतों से कहा*
*दोऊ बात भई है भारी,*
*नृप कही संतनि विस्तारी ।*
*जनज्ञांना कहै माणिकदासू,*
*आग्या पायहिं वचन प्रकासू ॥५२॥*
राजा जैमल ने संतों को विस्तार से कहा कि दो बातें - पदमसिंघ से युद्घ करना और उसका माता की पूजा नहीं छोड़ना दोनों ही भारी बाते हैं । अत: आप संत, मार्ग दर्शन करें । तब ज्ञान दासजी ने माणकदास जी को कहा कि हम श्रीदादूजी से आज्ञा लेकर ही अपने वचनों को प्रकाशित करेंगे । अर्थात् दादूजी का ध्यान कर ही बात कहेंगे ॥५२॥
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*हमको आग्या रहै न राऊ,*
*जब समझै तब स्वामी आऊ ॥*
*कहो गुरुजी कैसे आवें,*
*वो समझै, दर्शन हम पावैं ॥५३॥*
ज्ञान व माणक कहते हैं कि हमको गुरुदेव की यही आज्ञा है कि जब राव अति प्रयत्न से भी न समझे तब स्वामी दादूजी महाराज के आने से ही समझेगा । तब जैमल ने कहा गुरु दादूजी कैसे आवेंगे । उनके आने से राव पदमसिंघ समझ जावेगा और हमको दादूजी के दर्शन हो जावेंगे ॥५३॥
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*संतों ने कहा दादूजी से पदमसिंघ समझेगा*
*आराधत आवे हरिदासा,*
*मिटे क्लेस पूरै मन आसा ।*
*इतनी सुनी गये अस्थानू,*
*मरणा मांडि तज्यौ अन्न पानू ॥५४॥*
ज्ञान व माणकदास ने कहा कि हरि के दासों भक्तों की आराधना करने से वे तुरन्त आ जाते हैं और उनके आने व दर्शन से मन के सब प्रकार के क्लेश और आशाऐं मिट जाती हैं । इतना सुनकर राजा स्थान अपने आश्रम पर गया और अन्न पान छोड़कर गुरु के दर्शन के लिये मरणव्रत धारण कर लिया ॥५४॥
(क्रमशः)
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