शुक्रवार, 25 दिसंबर 2020

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*#श्रीदादू०अनुभव०वाणी, द्वितीय भाग : शब्द*
*राग धनाश्री २७(गायन समय दिन ३ से ६)*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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४२९ - *उपदेश चेतावनी* । प्रति ताल
https://youtu.be/uROTgu0Ez64
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जियरा ! राम भजन कर लीजै ।
साहिब लेखा मांगेगा रे, उत्तर कैसै दीजै ॥टेक॥
आगै जाइ पछतावन लागो, पल पल यहु तन छीजै ।
तातैं जिय समझाइ कहूं रे, सुकृत अब तैं कीजै ॥१॥
राम जपत जम काल न लागै, संग रहें जन जीजे ।
दादू दास भजन कर लीजै, हरिजी की रास रमीजै ॥२॥
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उपदेश द्वारा सावधान कर रहे हैं - अरे मन ! शरीर के ठीक रहते २ ही राम का भजन कर ले, फिर न होगा । जब प्रभु तेरे से जीवन का हिसाब मांगेंगे तब बिना भजन किये उन्हें कैसे उत्तर देगा ?
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कारण - तू गर्भ में उनके आगे भजन करने की प्रतिज्ञा करके आया था । यह शरीर क्षण २ में क्षीण हो रहा है, आगे वृद्धावस्था में जाकर तू पश्चात्ताप करने लगेगा, इसीलिये हे मन ! तुझे समझाकर कह रहा हूं, तू अभी से भजनादि सुकृत कर ले ।
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राम - नाम जपने से यम और काम का जोर जापक पर नहीं लगता । भक्त भगवान् के साथ अभेद भाव से रह कर जीवित रहता है । मेरी बात मान कर भजन द्वारा उन प्रभु को प्राप्त कर लो । उन हरि की शरण में रह कर उनके साथ अभेद स्थिति का आनन्दानुभव रूप रास खेल ।
(क्रमशः)

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