बुधवार, 30 दिसंबर 2020

*राज करै इमि भक्त किये सब*

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏🇮🇳 *卐सत्यराम सा卐* 🇮🇳🙏
🌷🙏🇮🇳 *#भक्तमाल* 🇮🇳🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*दादू अपणी अपणी हद में, सब कोई लेवे नाउँ ।*
*जे लागे बेहद सौं, तिन की मैं बलि जाउँ ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ स्मरण का अंग)*
=================
*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,* 
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान* 
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
.
*राज करै इमि भक्त किये सब,*
*पास रहै तिन क्यों रु बखानौं ।*
*नाम उचारत धामन धामन,*
*काम न और सु सेवन मानौं ॥*
*मोह न लोभ न काम न क्रोध न,*
*है मद नांहिं न नैन नसानौं ।*
*आदि रु अंत कथा उर भावत,*
*प्रात पढै फल जैमन जानौं ॥६६॥*
इस प्रकार सबको भक्त बना कर चन्द्रहास राज्य करने लगे । चन्द्रहास के पास रहने वालों का तो क्या कथन करूं, वे तो भगवद् भक्तिमें निमग्न थे ही किन्तु चन्द्रहास के राज्य में स्थान स्थान पर प्रभु-नाम का उच्चारण होता था अर्थात् संकीर्तन होता रहता था । चन्द्रहास के हृदय में और कोई भी कामना नहीं थी । भली भांति भगवद् सेवा-पूजा करना ही मानों उनका मुख्य काम था, भगवद् भक्ति प्रचार की ही कामना हृदय में थी । 
.
उनके मन में मोह, लोभ, काम, क्रोध और मद ये आसुर गुण तो थे ही नहीं और न उनके ज्ञान रूप नेत्र ही नष्ट हुये थे अर्थात् सदा सब कार्य विचार पूर्वक ही करते थे । चन्द्रहास की कथा आदि से अन्त तक हृदय को प्यारी लगती है । इसका जो प्रातःकाल नित्य पढने का फल होता है, वह तो जैमिनी अश्वमेघ से जानना चाहिये । 
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें