शनिवार, 9 जनवरी 2021

*यदु मल्लिक के मकान पर*

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*मन मृगा मारै सदा, ताका मीठा मांस ।*
*दादू खाइबे को हिल्या, तातैं आन उदास ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ मन का अंग)*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
(२)
*यदु मल्लिक के मकान पर* 
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श्रीरामकृष्ण ने राखाल के लिए सिद्धेश्वरी के नाम पर कच्चे नारियल और चीनी की मन्नत की है । मणि से कहा रहे हैं, “तुम नारियल और चीनी का दाम दोगे ।”
दोपहर के बाद श्रीरामकृष्ण राखाल, मणि आदि के साथ कलकत्ते के श्री सिद्धेश्वरी मन्दिर की ओर गाड़ी पर सवार होकर आ रहे हैं । रास्ते में सिमुलियाबाजार से कच्चे नारियल और चीनी खरीदी गयी ।
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मन्दिर में आकर भक्तों से कह रहे हैं, “एक नारियल फोड़कर चीनी मिलाकर माँ को अर्पण करो ।”
जिस समय मन्दिर में आ पहुँचे, उस समय पुजारी लोग मित्रों के साथ माँ काली के सामने ताश खेल रहे थे । यह देखकर श्रीरामकृष्ण भक्तों से कह रहे हैं, “देखो, ऐसे स्थानों में भी ताश ! यहाँ पर तो ईश्वर का चिन्तन करना चाहिए !”
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अब श्रीरामकृष्ण यदु मल्लिक के घर पर पधारे हैं । उनके पास अनेक बाबू लोग बैठे हुए हैं । 
यदुबाबू कह रहे हैं, “पधारिए, पधारिए ।” आपस में कुशल प्रश्न के बाद श्रीरामकृष्ण बातचीत कर रहे हैं ।
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श्रीरामकृष्ण(हँसकर) – तुम इतने चापलूसों को क्यों रखते हो ?
यदु(हँसते हुए) – इसलिए कि आप उनका उद्धार करें । (सभी हँसने लगे) 
श्रीरामकृष्ण – चापलूस लोग समझते हैं कि बाबू उन्हें खुले हाथ धन दे देंगे; परन्तु बाबू से धन निकालना बड़ा कठिन काम है । 
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एक सियार एक बैल को देख उसका फिर साथ न छोड़े । बैल चरता फिरता, सियार भी साथ साथ है । सियार ने समझा कि बैल का जो अण्डकोष लटक रहा है, वह कभी न कभी गिरेगा और उसे वह खायेगा ! बैल कभी सोता है तो वह भी उसके पास ही लेटकर सो जाता है और जब बैल उठकर घूम-फिरकर चरता है तो वह भी साथ साथ रहता है । कितने ही दिन इसी प्रकार बीते परन्तु वह कोष न गिरा, तब सियार निराश होकर चला गया ! (सभी हँसने लगे ।) इन चापलूसों की ऐसी ही दशा है !
यदुबाबू और उनकी माँ ने श्रीरामकृष्ण तथा भक्तों को जलपान कराया । 
(क्रमशः)

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