शनिवार, 9 जनवरी 2021

काल का अंग २५ - २५/२९

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
https://www.facebook.com/DADUVANI
भाष्यकार - ब्रह्मलीन महामंडलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरणवेदान्ताचार्य । साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
.
(#श्रीदादूवाणी ~ काल का अंग २५ - २५/२९)
.
*दादू सबको पाहुणा, दिवस चार संसार ।*
*औसर औसर सब चले, हम भी इहै विचार ॥२५॥*
इस संसार में सभी प्राणी चार दिन के अतिथि हैं । जैसे आये हैं वैसे ही समय पर चले जायेंगे । मैं भी इसी विचार में मग्न हूँ कि हमें भी एक दिन चलना होगा । अतः उस काल की प्रतीक्षा कर रहा हूँ । अथवा साधनपरायण होकर उस काल पर विजय प्राप्त कर लूं । 
महाभारत में- जैसे समुद्र में लकड़ियाँ इकट्ठी हो जाती है और जल के वेग से अलग अलग हो जाती है । ऐसा ही प्राणियों का समागम माना गया है । अथवा जैसे कोई पथिक वृक्ष की छाया में विश्राम करके आगे चल देता है । ऐसे ही जीवात्मा शरीरों में विश्राम करके आगे दूसरे शरीरों में चल देता है ।
.
*॥ भयमई पंथ बिषमता ॥*
*सबको बैठे पंथ सिर, रहे बटाऊ होइ ।*
*जे आये ते जाहिंगे, इस मारग सब कोइ ॥२६॥*
सभी प्राणी मृत्यु के मार्ग में पथिक होकर बैठे हैं । क्योंकि जन्म लेने वाले सभी प्राणियों को इस मार्ग से जाना पड़ता है ।
महाभारत में लिखा है कि- यह दुःसह मृत्यु मार्ग सभी को क्रम से प्राप्त होता है और हमारे को पका रहा है । जब पूर्ण पक जाता है तो मृत्यु के मुख में चला जाता है । चाहे देह जीव को छोड़कर चला जाय या जीव देह छोड़कर चला जाय, जैसे रास्ते चलने वाला पथिक अपने स्त्री पुत्र बान्धवों से मिल जाता है और वह मृत्यु का मार्ग बहुत विशाल है, जो सब प्राणियों से सेवित है । इसमें जीव को अवश्य होकर जाना पड़ता है ।
.
*बेग बटाऊ पंथ सिर, अब विलम्ब न कीजे ।*
*दादू बैठा क्या करे, राम जप लीजे ॥२७॥*
हे पथिक ! तुम मृत्यु मार्ग में पहुँच गये हो । अर्थात् तेरी मृत्यु समीप ही है । जल्दी कर, बैठा-बैठा क्या करता है । राम चिन्तन करके ब्रह्म को प्राप्त करले जिससे मृत्यु के मार्ग में आने वाले कष्टों से मुक्त हो जाये ।
.
*संझ्या चलै उतावला, बटाऊ वन-खंड मांहि ।*
*बरियां नांहीं ढील की, दादू बेगि घर जांहि ॥२८॥*
जैसे कोई मुसाफिर वन में चलता हुआ सांयकाल के समय अपने घर जाने के लिये जल्दी जल्दी चलता है । वैसे ही पथिक तुम भी इस संसार रूपी वन में आ पहुँचा है । सन्ध्या रूपी बुढ़ापा भी आ गया । अतः यह विलम्ब करने का समय नहीं है । किन्तु शीघ्रता से भजन करके अपने स्वरूप गृहरूपी ब्रह्म को प्राप्त कर लो । 
भर्तुहरिशतक में लिखा है कि- मुख पर झुर्रियाँ पड़ गई हैं । बाल पक कर सफेद हो गये शरीर के अंग भी शिथिल पड़ गये । लेकिन तेरी तृष्णा ज्यों ज्यों बुढ़ापा आता जाता है वैसे वैसे बढ़ती जाती है । अतः तृष्णा को त्याग कर हरि भजन में लग जाओ ।
.
*दादू करह पलाण कर, को चेतन चढ जाइ ।*
*मिल साहिब दिन देखतां, सांझ पड़े जनि आइ ॥२९॥*
हे साधक तू विवेक वैराग्य द्वारा शरीर को संयमित करके शरीर की ममता को त्याग कर समाहित मन से प्रभु को प्राप्त करले । अन्यथा वृद्धावस्था रूप सन्ध्याकाल आने पर तो शरीर भी शिथिल पड़ जायेगा तब तू कोई भी साधन नहीं कर सकेगा ।
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें