शनिवार, 9 जनवरी 2021

*११. भगति संजीवनी कौ अंग ~ ८१/८४*

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*श्रद्धेय श्री महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ Premsakhi Goswami*
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*११. भगति संजीवनी कौ अंग ~ ८१/८४*
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भगत भगति भगवंत गुरु, कथित भागवत वेद ।
कहि जगजीवन मिलि रहे, ते जन पावैं भेद ॥८१॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि भक्त ही लीन हो भक्ति होजाये तो प्रभु स्वयं उसके मार्ग दर्शक गुरु होते है । यह सब वेद और भागवत भी कहते हैं । वे इस प्रकार मिल जाते है कि जन उनका भेद ही समझते रहते हैं ।
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रांम भगत रांमहि भगति, रांमहि भगवंत नांम । 
कहि जगजीवन रांम गुर, रांम रटहु सब ठांम ॥८२॥ 
संतजगजीवन जी कहते हैं कि राम भक्त है वे ही भक्ति है और वह ही प्रभु का नाम है । और वह सिमरण रुपी राम ही गुरु महाराज है अतःसर्वत्र राम स्मरण करें ।
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मुख्य प्रथम भगवंत हरि, भगवंत भगति कर जांण ।
कहि जगजीवन भाइ मिलि, रांम रिदा मंहि आंण ॥८३॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि मुख्य सबसे पहले प्रभु या भगवान हरि हैं, की भगवान भक्ति को ही भगवान माने । और जैसे भाई मिलते हैं ऐसे ही राम को हृदय में रखे ।
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सोई भगत भगवंत सोइ, सोइ भगति परवांण ।
कहि जगजीवन क्रिपा हरि, कोइ जन जांणै जांण ॥८४॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि वह ही भक्त है वे ही भगवान हैं और वह भक्ति ही पूर्ण है जहाँ प्रभु की कृपा हो, यह बात कोइ विरला जन ही जान पाता है ।
(क्रमशः)

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