शनिवार, 9 जनवरी 2021

(“सप्तमोल्लास” १३/१५)

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स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्‍वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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(“सप्तमोल्लास” १३/१५)
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*पदमसिंघ के बाजे औरू,*
*सो सब तुरत आये तिहिं ठौरू ।* 
*आगत धावे सुमरे राम,*
*पहुंचे जाई करी प्रणाम ॥१३॥*
फिर दोनों राजाओ के परिवार, बाजे, और दोनों की प्रजा के भी बहुत से लोग साथ साथ जहां दादूजी थे उस बन में पहुंचे और राम का स्मरण करते हुये दादूजी के चरणों में जाकर प्रणाम किया ॥१३॥ 
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*श्री दादू जी महाराज का सभी ने दर्शन किया*
*ज्यूं तारनि में सोहे चंद, 
ऐसे स्वामी जपै गोविन्द ।* 
*स्वामी के चरणों नायो सीसू, 
मानों आज मिल्यो जगदीसू ॥१४॥* 
श्री दादू जी का स्वरूप गोरवर्ण तेजोम्य उस समय जैसे तारों में चन्द्र की शोभा होती है वैसे ही जन समूह के बीच में दादूजी की शोभा हो रही थी । दादूजी निरंजन राम का जप कर रहे थे । फिर सब ने क‘मश: दादूजी के चरणों में मस्तक रखकर प्रणाम किया और मन में ऐसा समझ रहे थे कि आज जगदीश्‍वर ही मिल गये ॥१४॥ 
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*उज्जवल रूप निर्मल नैन,*
*दरस करत उपज्यौ मन चैन ।* 
*लेहीं रज सब चरण निवासू,*
*भया प्रकास तिमिर को नासू ॥१५॥* 
श्री दादूजी का स्वरूप गौर वर्ण और पवित्र था । नेत्र निर्मल थे दर्शन करने पर सभी के मन को आनन्द व शान्ति प्राप्त हुई । सब लोग दादूजी के चरण कमलों की रज सिर पर धारण कर रहे थे । उनका मन दादूजी के चरणों में स्थिर हो गया था । दादूजी के दर्शन और उपदेश से सबके मन का अज्ञानांधकार नष्ट होकर ज्ञान का प्रकाश हो रहा था ।
(क्रमशः)

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