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स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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(“सप्तमोल्लास” १०/१२)
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*गहरी धुनि अंबर जाई लागी,*
*धरयाजु जैमल चल्यो बड़भागी ।*
*स्याहत पुर आरणि मैं सोई,*
*पदमसिंघ स्वामी तहां होई ॥१०॥*
गाजों बाजों की गहरी ध्वनि से नभ मंडल गूंज रहा था । इस प्रकार से बड़ा भाग्यशाली धरयाजु जयमल दादूजी के दर्शन करने चला था । उस समय स्याहत पुर के बन में राजा पदमसिंघ और दादूजी महाराज विराजते थे ॥१०॥
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*श्री दादू जी के दर्शनों के लिए आतुर*
*ज्यूं पीहे कूं सुरही धावै,*
*कब जू स्वामी दर्शन पावें ।*
*चलि करि आगत पहुंचे जाई,*
*आगे सहर इजावलि आई ॥११॥*
जैसे बछड़े के लिये सायंकाल के समय गाय बन से दौड़ कर आती है वैसे ही सब दादू जी के दर्शन के लिये आतुर हो कर आ रहे थे कि कब कितनी जल्दी से दादूजी के दर्शन प्राप्त करे । इस प्रकार चलते चलते वे यजावली नगर राजा पदमसिंघ जी की राजधानी में आ पहंचे ॥११॥
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*राजा के ६०० पुत्र भी भक्ति में लग गये*
*षष्ठ से सुत पदमसिंघ राई,*
*ताहू बेर सब लिये बुलाई*
*लियौ बुलाय सकल दरबारू,*
*भेज्यो दल आया संसारू ॥१२॥*
राजा पदमसिंघ के छ: सौ(६००) पुत्र वहां थे, उनको और पदमसिंघ के दरबारी लोगों को बुलाया वे सब और अन्य लोग धरयाजू जैमल के दल में मिल गये ॥१२॥
(क्रमशः)

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