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🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
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भाष्यकार - ब्रह्मलीन महामंडलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरणवेदान्ताचार्य । साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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(#श्रीदादूवाणी ~ काल का अंग २५ - २१/२४)
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*सींगी नाद न बाजहि, कत गये सो जोगी ।*
*दादू रहते मढी में, करते रस भोगी ॥२१॥*
मिट्टी से बनी हुई मंढी में जो जीव रूपी योगी रहता था और संसार के सुखों को भोगता था वह जीव रूपी योगी श्वास प्रश्वास रूपी नाद की आवाज करता था और इस शरीर में अभिमान करके रसास्वादन करता था वह योगी कहां गया । आज उसके नाद की आवाज नहीं सुनाई पड़ती है । क्या वह मर गया ।
प्रसंगकथा- आमेर में श्री दादू जी महाराज के पास ही एक कुटिया में नाथ सम्प्रदाय का योगी रहता था । वह वास्तविक योगी नहीं था किन्तु नाना प्रकार के भोगों से लिप्त था और प्रतिदिन अपनी श्रृंगी बजा कर आवाज दिया करता था । एक दिन उसके श्रृंगी की आवाज सुनाई नहीं पड़ी तब श्री दादू जी महाराज ने कहा कि आज वह नाथ योगी मर गया क्या ? क्योंकि आवाज नहीं आ रही है ।
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*दादू जियरा जायगा, यहु तन माटी होइ ।*
*जे उपज्या सो विनश है, अमर नहीं कलि कोइ ॥२२॥*
एक दिन यह जीव अवश्य मर जायेगा । शरीर भी मर का मिट्टी में मिलेगा । क्योंकि जो पैदा होता है उसकी मृत्यु अवश्य होती है, ऐसा ही नियम है और इस युग में अमर तो कोई हो ही नहीं सकता है ।
महाभारत में लिखा है कि- जैसे पुराने या नये वस्त्रों को त्याग कर मनुष्य दूसरा वस्त्र धारण करता है ऐसे ही देही एकदेह को त्याग कर दूसरा धारण करता है । पैदा होते ही चराचर जगत् को काल नाश करने लग जाता है । साथ में बुढ़ापा भी आने लगता है । सारे पदार्थ इन दोनों भावों से बंधे हुए हैं ।
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*दादू देही देखतां, सब किसही की जाइ ।*
*जब लग श्वास शरीर में, गोविन्द के गुण गाइ ॥२३॥*
यह जीवात्मा इस स्थूल शरीर को त्याग कर सब के देखते-देखते ही बाहर निकल जाता है । अतः जब तक शरीर में श्वास है तब तक हरि के गुणानुवाद गाकर जीवन को सफल बना लो ।
महाभारत में लिखा है कि- मनुष्य फूलों के तोड़ने में लगा है । मन भी उसका अन्यत्र दौड़ रहा है । अभी तक भोगों की कामना भी पूरी नहीं हुई है । उससे पहले ही मृत्यु मनुष्य को पकड़ कर ले जाता है । जैसे भेड़ को भेडिया अकस्मात् आकर दबोचता है ।
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*दादू देही पाहुणी, हंस बटाऊ मांहि ।*
*का जाणूं कब चालसी, मोहि भरोसा नांहि ॥२४॥*
इस शरीर को अतिथि की तरह समझो, और इसमें रहने वाला जीवात्मा रूपी हंस यात्री है । अतिथि और यात्री दोनों एक जगह पर बहुत दिनों तक नहीं रह सकते इसी प्रकार यह शरीर जीव को छोड़कर और जीव इस शरीर को छोड़ कर कभी भी जा सकते हैं । इनका विश्वास नहीं किया जा सकता, कौन किस को छोड़ कर चला जाये ।
(क्रमशः)

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