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*#पं०श्रीजगजीवनदासजीकीअनभैवाणी*
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*श्रद्धेय श्री महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ Premsakhi Goswami*
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*११. भगति संजीवनी कौ अंग ~ ६५/६८*
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परिकरमा८ दंडवत९ करि, हरि सनमुख कर जोड़ि ।
कहि जगजीवन रांम रटि, अलख निबाहै वोडि१० ॥६५॥
{८. परिकरमा=परिक्रमा(=भगवान् के चारों ओर प्रदक्षिणा)}
(९. दंडवत=साष्टांग प्रणाम) (१०. वोडि=जीवन के अंत तक)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि परिक्रमा व दंडवत प्रणाम करके, हाथ जोड़ प्रभु सन्मुख रहे व स्मरण करते रहें तो प्रभु सेवक की सेवा को अंत तक निभाते हैं ।
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अलख निबाहै वोडि हरि, आतम अस्थल आइ ।
कहि जगजीवन पूर हरि, प्रेम प्रीति ल्यौ लाइ ॥६६॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि प्रभु आत्मा में विराजमान होकर अंत तक निबाहते हैं और जो प्रेम प्रीति से लय लगाते हैं उन्हें सब कुछ देते हैं ।
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अन्न अहारी अनंग घर१, पवन अहारी सास ।
रांम अहारी रांम घर, सु कहि जगजीवनदास ॥६७॥
{१. अनंग घर=कामदेव का स्थान(वासना)}
संतजगजीवन जी कहते हैं कि जो अन्न का आहार करते हैं वे कामना पूर्ति हेतु कामदेव का प्रश्रय लेते हैं, वायु से यापन श्वास का; और जो स्मरण का प्रश्रय लेते हैं वे प्रभु के घर का आश्रय पाते हैं ।
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ग्यांन अहारी सबद घर, ध्यान अहारी तास ।
प्रेम अहारी रांम घर, सु कहि जगजीवनदास ॥६८॥
संतजगजीवन जी कहते हैं जो जन ज्ञान मार्ग के है उनका शब्द आधार है । और ध्यान मार्ग वालों के प्रभु आधार है । और जो प्रेम मार्गी हैं उनका आधार राम है ।
(क्रमशः)

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