मंगलवार, 5 जनवरी 2021

*तन मन धन अर्पि हरि मिले,*

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*साहिब जी के नांव में, भाव भगति विश्‍वास ।*
*लै समाधि लागा रहै, दादू सांई पास ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ स्मरण का अंग)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,* 
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान* 
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
*तन मन धन अर्पि हरि मिले,* 
*जन राघव येते राजॠष ॥*
*उत्तानपाद प्रियव्रत, अंग मुचकंद प्रचेता ।*
*योगेश्वर मिथिलेश, पृथु परीक्षित ऊर्ध्वरेता ॥*
*हरिजश्वा हरिविश्व, रहुगण जनक सुधन्वा ।*
*भागीरथ हरिचंद्र, सगर सत्यव्रत सु मन्वा ॥*
*प्राचीनबर्ही इक्ष्वाकु रघु, रुक्मांगद कुरु गाधि शुचि ।*
*भरत सुरथ सुमती रिभू, अैल अमूरती रै गै रूचि ॥५४॥*
अपने तन, मन और धन को हरि के समर्पण करके इतने राजर्षि हरि को प्राप्त हुये हैं- *{प्रथम अंश}*
*१.उत्तानपाद -* उत्तानपादजी स्वायंभूव मनु के पुत्र और प्रसिद्ध भक्त ध्रुवजी के पिता हुये हैं । अतः आप सर्व प्रकार प्रशंसा के योग्य हैं । आपने राज्य ध्रुव को देकर वन निवास करते हुये हरि भजन किया और परमगति को प्राप्त हुये ।
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*२.प्रियव्रत -* प्रियव्रत स्वायंभूव मनु और शतरूपा के पुत्र हैं । आप छोटी अवस्था में ही नारदजी के उपदेश से विरक्त होकर हरि भजन करने के लिये वन में चले गये थे फिर ब्रह्माजी तथा मनुजी के कहने से गृहस्थ हुये थे । इनके दश पुत्र हुये थे, उनमें तीन ऊर्ध्वरेता(विरक्त) और सात गृहस्थ हुये हैं । इनने सूर्य के समान तेजस्वी एक रथ प्रकट किया था, जिससे रात्रि में भी दिन-सा रहता था । प्रियव्रत दीर्घकाल तक राज्य करके हरि भजन द्वारा परमगति को प्राप्त हुये हैं । 
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*३.अंगजी -* राजा अंगजी सूर्य वंशी और बिठूर निवासी थे । बड़े धर्मात्मा राजर्षि थे । इनके पुत्र न था । ब्राह्मणों से पुत्र के लिये यज्ञ कराया किन्तु पूर्व पाप के कारण देवताओं ने यज्ञ स्वीकार नहीं किया, फिर बहुत विनय करने पर ब्राह्मणों ने वसु का यज्ञ किया । वसु महाराज ने प्रकट होकर क्षीरान्न(हविष) दिया, जिससे राजा वेणु उत्पन्न हुआ । किन्तु वह अपने धर्मात्मा पिता की आज्ञा में नहीं चलता था । इससे अंगजी किसी को बिना कहे ही वन में जाकर हरि भजन में लग गये थे और अन्त में देह छोड़कर प्रभु को प्राप्त हुये थे । अंग नाम के दूसरे राजा अंगदेश(पटना बिहार) के थे इनके पुत्र रोमपादजी भी भगवान् के भक्त हुये हैं ।
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*४.मुचुकन्द -* आप अयोध्या के राजा थे, युद्ध में देवताओं की सहायता करने से थक कर पर्वत की गुफा में सो रहे थे । काल यवन के पीछा करने पर श्री कृष्ण भागते हुये उसी गुफा में आये और अपना पीताम्बर मुचुकुन्दजी को उढ़ा कर आप छिप गये । काल यवन ने मुचुकुन्द को छेड़ा तब इनने जग कर देखा, इनकी दृष्टि पड़ते ही काल यवन मारा गया । भक्त के अपराध का दंड शीघ्र ही मिलता है । गर्गाचार्य का वचन था- काल यवन किसी यदुवंशी के हाथ से नहीं मरेगा । इसी से कृष्ण ने नहीं मारा था ।
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*५.प्रचेता-* महाराज पृथु के वश में बर्हिषद नाम के एक महानुभाव राजा हुये हैं । ये योगाभ्यास में पारंगत और पुण्यात्मा थे । अधिक यज्ञ करने से प्राचीनबर्हि नाम से प्रसिद्ध हुये हैं । ब्रह्मा की आज्ञा से इनने समुद्र की शतद्रुति नामक कन्या से विवाह किया था । उससे इनके प्रचेता नामक दश पुत्र हुये थे । ये दशों भाई प्रचेता नाम से ही प्रसिद्ध हैं । पिता की आज्ञा से तप करने सिद्धिसर वा नारायणसर को जाते थे । मार्ग में नारदजी मिले और भक्ति के लिये तप करने का उपदेश दिया । दश हजार वर्ष तप करने के बाद गरुड पर चढ़े हुये भगवान् ने दर्शन देकर भक्ति का वरदान भी दिया और दशों भाइयों को एक लड़की से विवाह करने की आज्ञा भी दी । फिर इन्होंने कण्डुमुनि की पुत्री वार्क्षी के साथ विवाह किया, उससे इनके प्राचेतस दक्ष का जन्म हुआ । उसे राज्य देकर पुनः दशों भाई भजन करने के लिये वन में चले गये और भजन करके अन्त में प्रभु को प्राप्त हुये ।
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*६.मिथिलेश-* ये मिथिला पुरी के राजा थे, इनने योगी याज्ञवल्क्य का सत्संग किया था । योगीराज के सत्संग से ये योगेश्वर हो गये थे और भगवान् के परमभक्त तो थे ही । अथवा ९ योगेश्वर इनकी कथा छप्पय ९९ की टीका में देखो । ये ९ भाई हैं और ऋषभदेवजी के पुत्र हैं । 
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*७.पृथु-* परमभक्त ध्रुव के वंश में वेन नामक राजा हुआ था । वह बड़ा अत्याचारी एवं दुष्ट था । इसीसे मुनियों ने उसे शाप द्वारा मार दिया था । उसके कोई संतान नहीं थी, इसलिये मुनियों ने उसकी दोनों भुजाओं को मथकर विष्णु का अंश पृथु नामक पुरुष और लक्ष्मी का अंश अर्थिदेवी नामक स्त्री जो पृथु की धर्मपत्नी हुई है प्रकट किया था । पृथु चौबीस अवतारों में भी माने जाते हैं । भगवद् यश सुनने के आप ऐसे प्रेमी थे कि उसके सुनने के लिये भगवान् से दश हजार कर्णेन्द्रिय माँगी थी । भगवान् ने कहा-दश हजार कर्णेन्द्रिय शरीर में अच्छी नहीं लगेंगी । दश हजार से सुनने जितनी शक्ति आपके दो कानों को ही प्राप्त हो जायगी ।
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*८.परीक्षित-* आप अर्जुन के पौत्र अभिमन्यु और उत्तरा के पुत्र तथा हस्तिनापुर के राजा थे । भगवान् ने गर्भ में इनकी विशेष रूप से रक्षा की थी । आपने कलियुग को दंड दिया था और निवास के लिये पांच स्थान दिये थे- जहां हिंसा हो, मद्यपान हो, जुआ खेला जाय, वेश्या के और स्वर्ण पर रहो । आपको शुकदेवजी ने श्रीमद्भागवत् सुनाया था, आप परम भक्त राजर्षि थे । मिथिलेश, पृथु और परीक्षित तीनों ही विरक्त थे ।
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*९.हरिजश्वा(हर्यश्व)- * दश हजार दक्ष के पुत्र जिनको नारदजी ने भक्ति का उपदेश करके भजन में लगाया था । वे भगवद् भक्ति करके भगवान् को प्राप्त हुए हैं ।
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*१०.हरि विश्व(शबलाक्ष्व)- * एक हजार दक्ष के पुत्र । इनको भी नारद जी ने भक्ति का उपदेश देकर भक्त बनाया था । ये भी भगवद् भजन करके भगवान् को प्राप्त हुए हैं ।
(क्रमशः)

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