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*श्रद्धेय श्री महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ Premsakhi Goswami*
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*११. भगति संजीवनी कौ अंग ~ ५७/६०*
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रहै फकीरी६ सबूरी७, प्रेम भगति भखि रांम ।
कहि जगजीवन अहार८ हरि, नित प्रति भोकन नांम ॥५७॥
(६. फकीरी=वैराग्य) (७. सबूरी=सन्तोष वृत्ति)
{८. अहार=आहार(दैनिक भोजन)}
संतजगजीवन जी कहते हैं कि जो फकीरी में रहे व राम नाम ही देह हेतु जिसका भोजन हो, और हरि स्मरण ही दैनिक भोजन हो । वह ही भक्त है
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कहि जगजीवन ज्यूं कहै, त्यूं जे रहै बिचारि ।
तो रांम भगति करि रांम लहै, कदे न आवै हारि१ ॥५८॥
(१. कदे न आवै हारि=संसार में कभी पराजित नहीं होता)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि जैसा कहे वैसा ही विचार हो तो अवश्य ही राम भक्ति कर राम को पा सकते हैं । और फिर जीव कभी पराजित नहीं होता है ।
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जिनके लिख्या ललाट२ हरि, भाव भगति का अंक३ ।
कहि जगजीवन रांम धरि, ते जन रमै निसंक४ ॥५९॥
(२. ललाट=मस्तक) (३. अंक=चिन्ह) {४. निसंक=निःशंक (निश्चिन्त)}
संतजगजीवन जी कहते हैं कि जिसके भाग्य में भक्ति है वे अपने समक्ष राम को पाकर निर्भय रहते हैं ।
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रांम रिदा मंहि भाव धरि, रांम भगति रस नूर ।
कहि जगजीवन रांम हरि, अनंत नांम भरपूर ॥६०॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि राम हृदय में भक्ति का आनंद रुपी तेज हो तो राम व हरि के आनंत नाम स्मरण में आते हैं ।
(क्रमशः)

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