रविवार, 3 जनवरी 2021

(“षष्टमोल्लास” ९७/९९)

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स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्‍वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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(“षष्टमोल्लास” ९७/९९)
*जों मांगे सो दई तैयारू,* 
*चिंतामणि कल्पवृछ तै सारू ।* 
*याकी सरिभरि कछू न लहिये,* 
*महिमां और कहां लू कहिये ॥९७॥* 
जो कुछ पदार्थ इस डिबिया से मांगोगे यह तुरन्त तैयार मिलेगा यह डिब्बी चिन्तामणि एवं कल्पवृक्ष से भी बढकर है । इसकी कुछ भी सार संभाल नहीं है । इसकी महिमा कहां तक कही जाय । अकथनीय है । 
*राणीयां सब मगन अवस्था में हो गई* 
*रांणी सकल भई गलतांन,* 
*मनोकांमना पायदांन ।* 
*सबही भूषण दीये उतारी,* 
*नगन मगन भई सब नारी ॥९८॥* 
दादूजी के उक्त वचन सुनकर सभी राणियां अत्यन्त प्रसन्न हुई । कारण उनको इचछानुसार वरदान मिल गया था । फिर सबने अपने आभूषण उतार दिये । वे सभी राणियां साधारण भेष धारण कर अति प्रसन्न हुई ॥९८॥ 
*किनहूं केस जटा करि लीये,* 
*किनहूं खुले छाडिरू दीये ।* 
*सेत वसन की करी कछोटी,* 
*किनहूं फारि लइ है दोटी ॥९९॥* 
किसी ने कैशों की जटा बना ली, किसी ने खुले छोड़ दिये । किसी ने धोती फाड़ कर श्‍वेत वस्त्र की कछनी बना ली और किसी ने श्‍वेत धोती लपेट ली ॥९९॥ 
(क्रमशः)

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