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स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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(“षष्टमोल्लास” ९७/९९)
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*जों मांगे सो दई तैयारू,*
*चिंतामणि कल्पवृछ तै सारू ।*
*याकी सरिभरि कछू न लहिये,*
*महिमां और कहां लू कहिये ॥९७॥*
जो कुछ पदार्थ इस डिबिया से मांगोगे यह तुरन्त तैयार मिलेगा यह डिब्बी चिन्तामणि एवं कल्पवृक्ष से भी बढकर है । इसकी कुछ भी सार संभाल नहीं है । इसकी महिमा कहां तक कही जाय । अकथनीय है ।
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*राणीयां सब मगन अवस्था में हो गई*
*रांणी सकल भई गलतांन,*
*मनोकांमना पायदांन ।*
*सबही भूषण दीये उतारी,*
*नगन मगन भई सब नारी ॥९८॥*
दादूजी के उक्त वचन सुनकर सभी राणियां अत्यन्त प्रसन्न हुई । कारण उनको इचछानुसार वरदान मिल गया था । फिर सबने अपने आभूषण उतार दिये । वे सभी राणियां साधारण भेष धारण कर अति प्रसन्न हुई ॥९८॥
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*किनहूं केस जटा करि लीये,*
*किनहूं खुले छाडिरू दीये ।*
*सेत वसन की करी कछोटी,*
*किनहूं फारि लइ है दोटी ॥९९॥*
किसी ने कैशों की जटा बना ली, किसी ने खुले छोड़ दिये । किसी ने धोती फाड़ कर श्वेत वस्त्र की कछनी बना ली और किसी ने श्वेत धोती लपेट ली ॥९९॥
(क्रमशः)

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