रविवार, 3 जनवरी 2021

*धापि त्रिलोक दुर्वास हु नामं*

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🙏🇮🇳 *卐सत्यराम सा卐* 🇮🇳🙏
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*समता के घर सहज में, दादू दुविध्या नांहि ।*
*सांई समर्थ सब किया, समझि देख मन मांहि ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ समर्थता का अंग)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,* 
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान* 
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*भाववती सुन वाक मन भयो मन,*
*कृष्ण पधारि कर्यो मन कामं ।*
*भूख लगी कछु देहु कहै हरि,*
*सोच हिये अन है नहिं घामं ॥*
*पूरण ह्वै जग मांहि रह्यो पगि,*
*नांहि छिपाय कहै इमि श्यामं ।*
*शाक हि पात लियो जल से सब,*
*धापि त्रिलोक दुर्वास हु नामं ॥७०॥*
प्रभु प्रेम से संपन्न द्रौपदी का उक्त वचन(श्रीकृष्ण कहीं नहीं गये हैं) सुनकर युधिष्ठिर का मन प्रसन्न हुआ । फिर द्रौपदी के प्रार्थना करने पर श्री कृष्ण ने पधार कर, उनके मन के अनुसार कार्य कर ही दिया । आते ही श्रीकृष्ण ने द्रौपदी से कहा- “भूख लगी है, पहले कुछ खाने को दो ।” यह सुनकर द्रौपदी चिन्ता करती हुई बोली-“अन्न तो घर में है नहीं । इसी दुख को दूर करने के लिये ही तो आपको बुलाने का कष्ट दिया है ।” किन्तु भगवान् तो संपूर्ण विश्व में परिपूर्ण हैं, उनसे कुछ छिपा हुआ तो नहीं है । वे बोले- तुम्हारे भोजन का पात्र देखो, उसमें है, छिपाओ मत । 
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श्याम सुन्दर श्रीकृष्ण का यह वचन सुनकर द्रौपदी ने देखा तो उसके एक शाक-पत्र लगा है । उसको खाकर भगवान् जल से आचमन करते हुए बोले “सब विश्व तृप्त हो जाय ।” इतना कहते ही तो त्रिलोकी सहित दुर्वासा तथा उनके सर्वशिष्य परम तृप्त हो गये और दुर्वासा से बोले- हमें तो अजीर्ण हो रहा है, हम कुछ नहीं खायेंगे । ऋषि ने सोचा न जीमने पर हम दोषी माने जायेंगे और भीम भी हमें तंग करेगा । अतः पाण्डवों के पास न जाकर अन्यत्र कहीं भाग जाना ही ठीक है । फिर वे सब चले गये । श्री कृष्ण ने कहा- उनको बुलाओ किन्तु वे तो भाग गये थे, मिले ही नहीं । इस प्रकार द्रौपदी की भक्ति का विचित्र परिचय है । 
(क्रमशः)

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