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*दादू जे कुछ खुसी खुदाइ की, होवेगा सोई ।*
*पच पच कोई जनि मरै, सुन लीज्यो लोई ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ विश्वास का अंग)*
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साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु ---------साधना
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एक गृहस्थ के घर में भारी में धन गड़ा था, उस पर एक भयंकर काला सर्प रहता था, वह उसे निकालने नहीं देता था, फिर एक बार गृहस्थ ने एक बड़ा कड़ाह तेल गर्म करके सर्प की बांबी में डाला, जिससे मर गया । गृहस्थ बड़ा प्रसन्न हुआ । फिर यह सोचकर कि अब जब इच्छा होगी तभी निकाल लेंगे फिर अकस्मात उसकी मृत्यु हो गई । इससे उसे धन प्राप्ति का सुख नहीं मिल सका, इसी प्रकार साधना के अवांतर फल, सिद्धि आदि में संतोष करने से मुक्ति रूप फल से वंचित ही रह जाते हैं।
आवांतर के तोश से, नहीं मुख्य फल पाय ।
सर्प मार संतोश से, धन सुख मिला न आय ॥१७४॥

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