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🌷 *#०दृष्टान्त०सुधा०सिन्धु* 🌷
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*दादू कुसंगति सब परिहरै, मात पिता कुल कोइ ।*
*सजन स्नेही बांधवा, भावै आपा होइ ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ साधु का अंग)*
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साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु ---------साधना
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धृतराष्ट्र, गांधारी, कुन्ती, संजय और विदुरजी जब तपस्या करने के लिये कुरुक्षेत्र में जाकर रहने लगे थे उसके कुछ समय बाद पांडव लोग उनके दर्शन करने कुरुक्षेत्र में गये थे । वहां पर कुछ दिन रहने के बाद कुंती ने कहा - पुत्रों ! अब तुम यहां से लौट जाओ, तुम्हारे यहा रहने से हमारे साधन में विध्न पड़ता है । पांडव भी माता की आज्ञा मानकर लौट आये । इससे सूचित होता है कि स्वजनों के संग से साधना में विध्न अवश्य पड़ता है ।
स्वजन संग से विध्न द्वो, साधन में प्रख्यात ।
यही कही थी कुन्ति ने, कुरुक्षेत्र में बात ॥२०२॥

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