बुधवार, 13 जनवरी 2021

*१२. चितावणी कौ अंग ~ १/४*

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*श्रद्धेय श्री महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ Premsakhi Goswami*
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*१२. चितावणी कौ अंग ~ १/४*
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रांम रांम हरि हरि अलख, भाव भगति भजि ताहि ।
कहि जगजीवन चेति नर, चितावणी चित चाहि ॥१॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि राम राम का स्मरण करें. परमात्मा को सर्वत्र देंखें व भाव भक्ति पूरण स्मरण करें । यह चेतावनी है प्रभु की है जीव जागो, व इसे समझो ।
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जगजीवन जुगि१ आइ करि, करणी कीजै सार ।
ह्रिदै कँवल मंहि राखिये, प्रीतम प्राण अधार ॥२॥
(१. जुगि=कलियुग में)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि इस कलयुग में जन्म लिया है तो उत्तम करणी कीजिये सदा हृदय रुपी कमलासन पर प्रभु को बिठाकर रखें ।
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जगजीवन जुगि आइ करि, भजि भगवंत अनंत ।
सोई करणी कीजिये, जा पर रीझै कंत ॥३॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि इस कलिकाल में जन्म लेकर प्रभु का भजन करें वे प्रभु ही अनंत हैं । उत्तम करणी करें जिससे प्रभु प्रसन्न हों ।
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जगजीवन जल बूंद२ थैं, सकल पसारा३ कीन्ह ।
आप अल्लह दाई रह्या, सो ता ही कूं चीन्ह ॥४॥
(२. जल बूंद=वीर्य की एक बिन्दु) {३. पसरा=प्रसार(=जग-द्विस्तार)} 
संतजगजीवन जी कहते हैं कि उन प्रभु ने एक बूंद के नियोजन से जीव को रच डाला वे स्वयं कर्ता पुरुष हैं अतः उन्हैं ही पहचानो ।
(क्रमशः)

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