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*जे जन राखे राम जी, अपने अंग लगाइ ।*
*दादू कुछ व्यापै नहीं, जे कोटि काल झख जाइ ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ सजीवन का अंग)*
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साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु ---------ईश्वर
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क्षीरसागर में अनन्तशायी प्रभु की नाभि से पद्म प्रकट हुआ । पद्म की कर्णिका से चतुर्मुख ब्रह्मा प्रगट हुये । क्षीरसमुद्र से दो बिन्दु कमल पर पहुच गये और वे आदि दैत्य मधु-कैटभ बन गये । ब्रह्मा भगवान के नि:श्वास से निकली हुई श्रुतियों को ग्रहण कर रहे थे । दोनों दैत्य ब्रह्माजी से श्रुतियाँ हरण करके नीचे भाग गये । ब्रह्माजी ने भगवान से प्रार्थना की । तब भगवान ने हयशीर्श रूपधारण करके अत्याचारी दैत्यों को मारकर श्रुतियों का उद्धार किया था ।
अत्याचारिन का करत, नाश शीध्र भगवान ।
हो हयशीर्श तुरन्त हते, मधु-कैटन बलवान ॥५४॥

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