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*पाका काचा ह्वै गया, जीत्या हारे डाव ।*
*अंत काल गाफिल भया, दादू फिसले पांव ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ मन का अंग)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*जड़भरत*
*नमो भर्त चक्रवर्ती जिन किये नवखण्ड,*
*अष्ट-खण्ड भ्रातन के एक खण्ड आपको ।*
*सोउ पुनि पुत्रन को दे गयो नरेश देश,*
*गण्डकी के तट जाय कीन्हों व्रत बाप को ॥*
*निमित्त करम पाय मंजन करत मुनि,*
*मृगी गर्भ डार्यो डरि सिंह की आताप१ को ।*
*राघो कहै यदपि जंजाल तज लीन्हों योग,*
*मृग छौना२ छूवत ही भंग भयो जाप को ॥५९॥*
ऋषभदेवजी के पुत्र नवयोगेश्वरों के बड़े भाई चक्रवर्ती महाराज भरत जी को नमस्कार । जिनने जम्बू द्वीप के नव खण्ड करके आठ खण्ड आठ भाइयों को दिये और एक का आपने राज्य किया ।
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वह अपने राज्य का प्रदेश भी राजा भरत अपने पुत्रों को देकर गण्डकी नदी के तट मुक्तिनाथ क्षेत्र में जाकर अपने पिता के तपस्या रूप व्रत का पालन करने लगे अर्थात् पिता के समान राज्य छोड़कर तपस्या करने लगे ।
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एक दिन किसी नैमित्तिक कर्म का समय आने पर मुनि नदी में स्नान कर रहे थे उसी समय वहां एक गर्भवती मृगी जल पीने आई थी । वह वहां सिंह की गर्जना सुनकर उसके भय१ से डरकर नदी में कूद गई । इससे उसका गर्भ गिर पड़ा और वह मर गई । उसका बच्चा नदी में बह चला ।
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यद्यपि भरतजी ने जगत जाल छोड़कर योग लिया था तद्यपि दयावश उस बच्चे को निकाला और असहाय जानकर उसे आश्रम पर ले आये । जिस समय मृगी के बच्चे२ को उनने छुवा था, उसी समय से उनके जाप में विघ्न पड़ गया था । प्रायः उस बच्चे का ही चिन्तन रहने लगा था ।
(क्रमशः)

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