बुधवार, 6 जनवरी 2021

= ४९ =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*नारी पुरुष को ले मुई, पुरुषा नारी साथ ।*
*दादू दोनों पच मुये, कछू न आया हाथ ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ माया का अंग)*
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साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु ---------वैराग्य
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उज्जयिनी नगरी के राजा भर्तृहरि को एक तपस्वी ब्राह्मण ने एक अमर फल लाकर दिया था । राजा ने वह फल अपनी प्यारी पिंगला को दिया । पिंगला एक दरोगा से लगी थी, इसलिये उसने वह फल अपने प्यारे दरोगा को दिया । दरोगा ने अपनी प्यारी वेश्या को दिया । वेश्या ने यह सोचकर कि - मैं अमर होकर पाप ही करूँगी, हमारा राजा बड़े धर्मात्मा हैं, वह अमर हो जायेंगे तो धर्म वृद्धि और प्रजा को सुख होगा, वह फल राजा राजा की भेंट कर दिया । फल को देखकर राजा को संशय हो गया । पूछने पर सब भेद खुल गया । राजा सभी के दुर्व्यावहार को जान के सब कुछ त्याग कर बनवासी हो गये ।
तिय के दुर्व्यवहार से, होत शीध्र वैराग ।
भर्तृहरि वन को गये, तृण सम तज अनुराग ॥१९१॥

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