रविवार, 10 जनवरी 2021

*निराकार साधना*

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*निकटि निरंजन लाग रहु, जब लग अलख अभेव ।*
*दादू पीवै राम रस, निहकामी निज सेव ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ निष्कर्मी पतिव्रता का अंग)*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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*परिच्छेद ६६ ~ बिल्ववृक्ष और पंचवटी के नीचे* 
*(१) निराकार साधना* 
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श्रीरामकृष्ण बेल के पेड़ के पास खड़े हुए मणि से बातचीत कर रहे हैं । दिन के नौ बजे होंगे ।
आज बुधवार है, १९ दिसम्बर १८८३ अगहन की कृष्णापंचमी है ।
इस बेल के पेड़ के नीचे श्रीरामकृष्ण ने साधना की थी । यह स्थान अत्यन्त निर्जन है । इसके उत्तर तरफ बारूदखाना और चारदीवार है । 
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पश्चिम तरफ झाऊ के पेड़, जो हवा के झोकों से हृदय में उदासीनता भर देनेवाली सनसनाहट पैदा करते हैं । आगे हैं भागीरथी । दक्षिण की ओर पंचवटी दिखायी पड़ रही है । चारों ओर इतने पेड़-पत्ते हैं कि देवालय पूर्ण तरह से दिखायी नहीं आते ।
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श्रीरामकृष्ण(मणि से) – पर कामिनी-कांचन का त्याग किये बिना कुछ होने का नहीं । 
मणि – क्यों ? वशिष्ठदेव ने तो श्रीरामचन्द्र से कहा था – राम, संसार अगर ईश्वर से अलग हो तो संसार का त्याग कर सकते हो ।’
श्रीरामकृष्ण(जरा हँसकर) - वह रावणवध के लिए कहा था । इसीलिए राम को संसार में रहना पड़ा और विवाह भी करना पड़ा ।
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मणि काठ की मूर्ति की तरह चुपचाप खड़े रहे ।
श्रीरामकृष्ण यह कहकर अपने कमरे में लौट जाने के लिए पंचवटी की ओर जाने लगे ।
मणि – साधना करने पर क्या ज्ञान और भक्ति दोनों ही नहीं हो सकते ?
श्रीरामकृष्ण – भक्ति लेकर रहने पर दोनों ही होते हैं । जरूरत होने पर वही ब्रह्मज्ञान देते हैं । खूब ऊँचा आधार हुआ तो एक साथ दोनों हो सकते हैं । ईश्वरकोटियों का होता है, - जैसे चैतन्यदेव का । जीवकोटियों की अलग बात है ।
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“आलोक(ज्योति) पाँच प्रकार के हैं । दीपक का प्रकाश, भिन्न भिन्न प्रकार की अग्नि का प्रकाश, चन्द्रमा का प्रकाश, सूर्य का प्रकाश तथा चन्द्र और सूर्य का सम्मिलित प्रकाश । भक्ति है चन्द्रमा और ज्ञान है सूर्य ।
“कभी कभी आकाश में सूर्यास्त होने से पहले ही चन्द्र का उदय हो जाता है, अवतार आदि में भक्तिरूपी चन्द्रमा तथा ज्ञानरुपी सूर्य एकाधार में देखे जाते हैं ।
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“क्या इच्छा करने से ही सभी को एक ही समय ज्ञान और भक्ति दोनों प्राप्त होते हैं ? आधारों की भी विशेषता है । कोई बाँस अधिक पोला रहता है और कोई कम पोला । सभी आधारों में ईश्वर की धारणा थोड़े हो होती है । सेर भर के लोटे में क्या दो सेर दूध आ सकता है ?
मणि – क्यों, उनकी कृपा से यदि वे कृपा करें तब तो सूई के छेद से ऊँट भी पार हो सकता है ?
श्रीरामकृष्ण – परन्तु कृपा क्या यों ही होती है ? भिखारी यदि एक पैसा माँगे तो दिया जा सकता है । परन्तु एकदम यदि रेल का भाड़ा माँग बैठे तो ?
(क्रमशः)

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