सोमवार, 18 जनवरी 2021

*१२. चितावणी कौ अंग ~ २१/२४*

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*#पं०श्रीजगजीवनदासजीकीअनभैवाणी*
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*श्रद्धेय श्री महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ Premsakhi Goswami*
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*१२. चितावणी कौ अंग ~ २१/२४*
कहि जगजीवन रांमजी, जे नित चाहै नींद ।
सेज सुहाग सनेह सुख, ते क्यों व्यंदे३ वींद ॥२१॥
{३. ब्यंदै=भूलै(=विस्मरण करे)}
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हे जीव यदि सुख चाहते हो तो प्रभु के स्नेह को याद रखो व उनके प्रति समर्पण का भाव रखो, वे हमारे स्वामी हैं । इस बात को कभी न भूलें ।
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मति काहू स्यूं कछु कहै, मति कहुँ काढै सास ।
नांउ सुमर निहचल रहै, सु कहि जगजीवनदास ॥२२॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि कभी किसी से कुछ मत कहो । और न कभी पश्चाताप के श्वास लो परमात्मा का नाम सिमरो व निश्चिंत बैठे रहे ।
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जे बोलै तो अगम घर, बिन रसनां सुन बात ।
कहि जगजीवन परम गुरु, सकल सुनावै तात४ ॥२३॥
(४. तात=प्रलाप करता है) 
संतजगजीवन जी कहते हैं कि अगर कुछ कहना है तो प्रभु के मन्दिर में ही कहना है वे बिना कुछ कहे ही सब सुनते हैं । वे ही परम गुरु हैं जिन्हें सब अपना हाल कहते हैं ।
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तात सुनावै ते कथा, जे हरि अगम अगाध ।
कहि जगजीवन सबद सुनि, सुख पावै सब साध ॥२४॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि जो पिता हमें यह ज्ञान कराते हैं कि प्रभु अगम अगाध है । उन नाथ के शब्द सुन कर सभी साधु जन सुखी होते हैं ।
(क्रमशः)

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