सोमवार, 18 जनवरी 2021

(“सप्तमोल्लास” ४०/४२)

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स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्‍वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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(“सप्तमोल्लास” ४०/४२)
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*अष्ट पहर करूं बहु रक्षा,*
*पशु पंखी कूं मोरी दिक्षा ।*
*जो चौरासी बन के मांहीं,*
*नरक मांहि जाणै द्यू नाही ॥४०॥*
इस बन में पशु पक्षियों की चतुरता से मैं आठो प्रहर रक्षा करता हूं । इसमें जो चौरासी लक्ष योनियों के जीव हैं उनमें से किसी को भी नरक में नहीं जाने दूंगा ॥४०॥
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*श्री ॠषि जी की प्रतिज्ञा जीवो के उधार की*
*एक जनम, को दूजै, तीजै,*
*कलियुग मंहि मुक्ति सब कीजै ।*
*अनेक जनम लो पकरूं हाथू,*
*दिक्षा वंत को तजूं न साथू ॥४१॥*
एक जन्म में व दूसरे जन्म में और कुछ लोगों का तथा तीसरे जन्म में कलियुग में तो इन सबकी मुक्ति कर ही दूंगा । मैने जिनको दीक्षा दी है उनका साथ नहीं छोडूंगा । अनेक जन्मों में भी उनका हाथ पकड़ कर अवश्य उद्घार करूंगा ॥४१॥
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*इहै जु उपजी रीस हमारे,*
*आरणि महिं जो कारज सारे ।*
*करणै दूं न आर खेटक बन मैं,*
*करौ जुद्घ भावै जो मन मैं ॥४२॥*
मेरे हृदय में यहां क्रोध उत्पन्न हो गया है जो इस वन के प्राणियों की रक्षा रूप कार्य को अवश्य सिद्घ करेगा तुमको इस वन में शिकार नहीं करने दूंगा । तुम्हारे मन में युद्घ करने की भावना है तो युद्घ भी कर सकते हो ॥४२॥
(क्रमशः)

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