सोमवार, 4 जनवरी 2021

*क्या संसार मिथ्या है?*

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*दादू राम हृदय रस भेलि कर, को साधु शब्द सुनाइ ।*
*जानो कर दीपक दिया, भ्रम तिमिर सब जाइ ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ शब्द का अंग)*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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(२)
*श्रीरामकृष्ण का दर्शन और वेदान्ततत्त्वों की गूढ़ व्याख्या* 
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जनाई के मुखर्जी चले गए । मणि सोच रहे हैं वेदान्तदर्शन के मत से सब स्वप्नवत् है । तो क्या जीव, जगत्, मैं – यह सब मिथ्या है ?
मणि ने थोड़ा-बहुत वेदान्त पढ़ा है । फिर जिनके विचार मानो वेदान्त की ही अस्फुट प्रतिध्वनि है, उन कान्ट, हेगेल आदि जर्मन पण्डितों के भी कुछ ग्रन्थ पढ़े हैं । परन्तु श्रीरामकृष्ण ने दुर्बल मानव की तरह विचार के द्वारा ज्ञान प्राप्त नहीं किया है, उन्हें तो स्वयं जगज्जननी ने सब कुछ दर्शन करा दिया है । मणि इसी के बारे में सोच रहे हैं ।
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कुछ ही देर बाद श्रीरामकृष्ण मणि के साथ अकेले पश्चिमवाले गोल बरामदे में बातचीत कर रहे हैं । सामने गंगाजी कलकल नाद करती हुई दक्षिण की ओर बह रही हैं । शीत ऋतु है । नैऋत्य दिशा में सूर्यनारायण अभी भी दिखायी दे रहे हैं । जिनका जीवन वेदमय है, जिनके श्रीमुख से निकली वाणी वेदान्तवाक्य है, जिनके श्रीमुख से स्वयं भगवान् ही बोलते हैं, जिनके वचनरुपी अमृत से वेद, वेदान्त, श्रीमद्भागवत आदि ग्रन्थों का निर्माण हुआ है, वही अहेतुककृपासिन्धु पुरुष गुरुरूप धारण कर रहे हैं ।
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मणि- क्या संसार मिथ्या है ?
श्रीरामकृष्ण – मिथ्या क्यों है ? वह सब विचार की बात है ।
“पहले-पहल ‘नेति’ ‘नेति’ विचार करते समय, वे न जीव हैं, न जगत् हैं, न चौबीस तत्त्व हैं, ऐसा हो जाता है, - यह सब स्वप्नवत् हो जाता है । इसके बाद अनुलोम विलोम होता है, तब वही जीव-जगत् हुए हैं, यह ज्ञान हो जाता है ।
“तुम एक-एक करके सीढ़ियों से छत पर गए । परन्तु जब तक तुम्हें छत का ज्ञान है, तब तक सीढ़ियों का ज्ञान भी है । जिसे चीज से छत बनी हुई है – ईंट, चूना, मसाला – उसी चीज से सीढ़ियाँ भी बनी हैं ।
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“और जैसे बेल की बात कही थी ।
“जिसका ‘अटल’ है, उसका ‘टल’ भी है ।
“’मैं’ नहीं जाने का । ‘मैं-घट’ जब तक है, तब तक जीव-प्रपंच भी है । उन्हें प्राप्त कर लेने पर देखा जाता है, जीव-प्रपंच वही हुए हैं । -केवल विचार से ही नहीं होता ।
“शिव की दो अवस्थाएँ हैं । जब वे समाधिस्थ हैं – महायोग में बैठे हुए हैं – तब आत्माराम हैं । फिर जब उस अवस्था से उतर आते हैं – थोड़ासा “मैं” रहता है – तब ‘राम राम’ कहकर नृत्य करते हैं ।”
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क्या शिव की अवस्था का वर्णन कर श्रीरामकृष्ण अपनी ही अवस्था सूचित कर रहे हैं ?
शाम हो गयी है । श्रीरामकृष्ण जगन्माता का नाम और चिन्तन कर रहे हैं । भक्तगण भी निर्जन में जाकर अपना अपना ध्यान-जप करने लगे । इधर कालीमाई के मन्दिर में, श्रीराधाकान्तजी के मन्दिर में और बारहों शिवालयों में आरती होने लगी ।
(क्रमशः)

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