गुरुवार, 7 जनवरी 2021

*त्रिगुणातीत भक्त बालक के समान*

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*दादू तन मन के गुण छाड़ि सब, जब होइ नियारा ।*
*तब अपने नैनहुं देखिये, प्रगट पीव प्यारा ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ चेतावनी का अंग)*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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*त्रिगुणातीत भक्त बालक के समान* 
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मणि – अच्छा त्रिगुणातीत भक्ति किसे कहते हैं ?
श्रीरामकृष्ण– उस भक्ति के होने पर भक्त सब चिन्मय देखता है । चिन्मय श्याम, चिन्मय धाम – भक्त भी चिन्मय – सब चिन्मय ! ऐसी भक्ति कम लोगों की होती है ।
डाक्टर मधु(सहास्य) – त्रिगुणातीत भक्ति, अर्थात् भक्त किसी गुण के वश नहीं । 
श्रीरामकृष्ण(सहास्य) – हाँ, जैसे पाँच साल का लड़का – किसी गुण के वश नहीं ।
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दोपहर को, भोजन के बाद, श्रीरामकृष्ण थोड़ा विश्राम कर रहे हैं । श्री मणिलाल मल्लिक ने आकर प्रणाम किया; फिर जमीन पर बैठ गए । मणि भी जमीन पर बैठे हुए हैं । श्रीरामकृष्ण लेटे लेटे ही मणि मल्लिक के साथ बीच बीच में एक एक बात कह रहे हैं ।
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मणि मल्लिक – आप केशव सेन को देखने गए थे ?
श्रीरामकृष्ण – हाँ, अब वे कैसे हैं ? 
मणि मल्लिक – रोग कुछ घटता हुआ नहीं दीख पड़ता ।
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श्रीरामकृष्ण – मैंने देखा, बड़ा राजसिक हैं । मुझे बड़ी देर तक बैठा रखा, तब भेंट हुई ।
श्रीरामकृष्ण उठकर बैठ गए और भक्तों के साथ बातचीत करने लगे ।
श्रीरामकृष्ण(मणि से)- मैं ‘राम राम’ कहकर पागल हो गया था । संन्यासी के देवता रामलला को लेकर घूमता फिरता था – उसे नहलाता था, खिलाता था, सुलाता था । जहाँ कहीं जाता, साथ ले जाता था । ‘रामलला’ ‘रामलला’ कहकर पागल हो गया था ।
(क्रमशः)

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