सोमवार, 18 जनवरी 2021

काल का अंग २५ - ६४/६८

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🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
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भाष्यकार - ब्रह्मलीन महामंडलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरणवेदान्ताचार्य । साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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(#श्रीदादूवाणी ~ काल का अंग २५ - ६४/६८)
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*दादू केई जाले केई जालिये, केई जालण जांहि ।*
*केई जालन की करैं, दादू जीवन नांहि ॥६४॥*
*केई गाड़े केई गाड़िये, केई गाडण जांहि ।*
*केई गाड़ण की करैं, दादू जीवन नांहिं ॥६५॥*
कितने ही जला दिये, कितने ही जल रहे हैं, कितनो को जलाने के लिये ले जा रहे हैं, कितनों को जलाने की तैय्यारी कर रहे हैं । किन्तु अपने जीने के लिये कोई विचार ही नहीं कर रहा अहि । यह एक महान् आश्चर्य है । लिखा है कि-
मरते हुए तथा मरे हुए को देख कर उसके भाई बन्धु रोते हैं और चिन्ता करते हैं परन्तु अपनी चिन्ता कोई नहीं करता कि मैं भी तो काल का ग्रास हूं, अतः मेरी भी एक दिन यह दशा होगी । दूसरी साखी का भी यही अर्थ है ।
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*दादू कहै- उठ रे प्राणी जाग जीव, अपना सजन संभाल ।*
*गाफिल नींद न कीजिये, आइ पहुंता काल ॥६६॥*
हे प्राणी ! व्यर्थ में ही अविद्या निद्रा में क्यों सो रहा है । क्यों प्रमादी बन रहा है । खड़ा हो जा और जाग कर देख, तेरी मौत पास ही आ गई है । अतः भगवान् को याद कर उसके भजन से ही काल के गाल से मुक्त हो सकता है । लिखा है कि-
यह मानव कालसर्प से भयभीत होकर उन लोकों से भाग रहा है । परन्तु इसको कोई भी लोक निर्भय नहीं मिला । जब यह यदृच्छया से भगवान् के चरण कमलों में आता है तो वहां स्वस्थ होकर सोता है क्योंकि काल भी भगवान् से डरता है ।
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*समर्थ का शरणा तजै, गहै आन की औट ।*
*दादू बलवंत काल की, क्यों कर बंचै चोट ॥६७॥*
यदि कोई साधक सर्वसमर्थ बलवान् परमात्मा की शरण छोड़ कर देवताओं की शरण में जाता है तो वह बलवान् काल के मुख से मुक्त नहीं हो सकता, क्योंकि वे भी सब काल के ही ग्रास हैं । गीता में कहा है कि-
संपूर्ण धर्मों को त्याग कर तू केवल मुझ सर्वसमर्थ शक्ति संपन्न सर्वाधार परमेश्वर की शरण में आ जा । मैं तुझे सब पापों से मुक्त कर दूंगा, तू शोच मत कर ।
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*॥ सजीवन ॥*
*अविनाशी के आसरे, अजरावर की ओट ।*
*दादू शरणैं सांच के, कदे न लागै चोट ॥६८॥*
देवताओं में सर्वश्रेष्ठ अविनाशी परमात्मा की ही शरण जावो । क्योंकि उसकी शरण में जाने वाला काल के मुख से मुक्त हो जाता है । क्योंकि काल भी भगवान् से डरता है । 
सुभाषितभाण्डागार में- जो सब के स्वामी पुरुषों में श्रेष्ठ त्रिलोकी के एकमात्र अधिपति मन से सेवन करने वालों को अपना परम पद भी प्रदान करने वाले नारायण भगवान् के रहते हुए किसी अन्य ग्रामाधिप जो सेवा करने पर अत्यल्प धन दे सकता है ऐसे नराधम पुरुषों को सेवा के लिये खोजता है वह मूढबुद्धि वाला है । 
(क्रमशः)

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