सोमवार, 18 जनवरी 2021

*गूढ़ बातें*

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*सुरति सदा सन्मुख रहै, जहाँ तहाँ लै लीन ।*
*सहज रूप सुमिरण करै, निष्कामी दादू दीन ॥* 
(#श्रीदादूवाणी ~ लै का अंग)
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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*परिच्छेद ६९ ~ जगद्गुरु श्रीरामकृष्ण*
(१) गूढ़ बातें 
आहुस्त्वामृषयः सर्वे देवर्षिर्नारदस्तथा ॥
असितो देवलो व्यासः स्वयं चैव ब्रवीषि मे ॥ 
(गीता १०/१३)
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दूसरे दिन श्रीरामकृष्ण झाऊतल्ले में मणि के साथ एकान्त में बातचीत कर रहे हैं । सोमवार, २४ दिसम्बर १८८३ । अगहन की कृष्णा दशमी । सुबह के आठ बजे होंगे ।
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आज मणि का प्रभु के सत्संग में वास करने का ग्यारहवाँ दिन है । शीत ऋतु है । पूर्व गगन में सूर्यनारायण अभी अभी उदित हुए हैं । झाऊतल्ले के पश्चिम ओर गंगाजी बह रही हैं । इस समय वे उत्तरवाहिनी हैं । ज्वार आयी है । चारों ओर वृक्ष और लताएँ हैं । थोड़ी ही दूर पर श्रीरामकृष्ण की साधना का स्थान – वह बिल्ववृक्ष – दिखायी दे रहा है । श्रीरामकृष्ण पूर्वाभिमुख हो वार्तालाप कर रहे हैं । मणि उत्तराभिमुख हो विनयपूर्वक सुन रहे हैं । श्रीरामकृष्ण की दाहिनी ओर पंचवटी और हंस-पुष्करिणी है । सूर्य के प्रकाश में मानो जग बिहँस रहा है । श्रीरामकृष्ण ब्रह्मज्ञान की बातें कर रहे हैं ।
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श्रीरामकृष्ण – निराकार भी सत्य है और साकार भी सत्य है ।
“नागा उपदेश देता था; सच्चिदानन्द ब्रह्म कैसे हैं – जैसे अनन्त सागर है, ऊपर नीचे, दाहिने-बायें, पानी ही पानी है । वह कारणसलिल है – स्थिर पानी है । कार्य के होने पर उसमें तरंगें उठने लगीं । सृष्टि, स्थिति और प्रलय यही कार्य है ।
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“फिर कहता था, विचार जहाँ पहुँचकर रुक जाय, वही ब्रह्म है । जैसे कपूर जलाने पर उसका सर्वांश जल जाता है, जरा भी रख नहीं रह जाती ।
“ब्रह्म मन और वचन के परे हैं । नमक का पुतला समुद्र की थाह लेने गया था । लौटकर उसने खबर नहीं दी । समुद्र में गल गया ।
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“ऋषियों ने राम से कहा था, - ‘राम, भरद्वाजादि तुम्हें अवतार कह सकते हैं, परन्तु हम लोग नहीं कहते । हम लोग शब्दब्रह्म की उपासना करते हैं । हम मनुष्य-स्वरूप को नहीं चाहते ।’ राम कुछ हँसकर प्रसन्न हो उनकी पूजा लेकर चले गए ।
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“परन्तु नित्यता जिनकी है, लीला भी उन्हीं की है । जैसे छत और सीढ़ियाँ ।
“ईश्वरलीला, देवलीला, नरलीला, जगत्-लीला । नरलीला में ही अवतार होता है । नरलीला कैसी है, जानते हो ? जैसे बड़ी छत का पानी नल से जोर-शोर से गिर रहा हो । वही सच्चिदानन्द हैं – उन्हीं की शक्ति एक रास्ते से – नल के भीतर से आ रही है । केवल भरद्वाजादि बारह ऋषियों ने ही राम को पहचाना था कि ये अवतारी पुरुष हैं । अवतारी पुरुषों को सभी पहचान नहीं सकते ।”
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श्रीरामकृष्ण(मणि से) – वे अवतीर्ण होकर भक्ति की शिक्षा देते हैं । अच्छा, मुझे तुम क्या समझते हो ?
“मेरे पिता गया गए थे । वहाँ रघुवीर ने स्वप्न दिखलाया, मैं तेरा पुत्र बनकर जन्म लूँगा । पिता ने स्वप्न देखकर कहा, देव, मैं दरिद्र ब्राह्मण हूँ, मैं तुम्हारी सेवा कैसे करूँगा ? रघुवीर ने कहा, सेवा हो जाएगी ।
“दीदी – हृदय की माँ – पुष्प-चन्दन लेकर मेरे पैर पूजती थी । एक दिन उसके सिर पर पैर रखकर(मैंने) कहा, तेरी वाराणसी में ही मृत्यु होगी । 
“मथुर बाबू ने कहा, ‘बाबा, तुम्हारे भीतर और कुछ नहीं है, वही ईश्वर हैं । देह तो आवरण मात्र है, जैसे बाहर कद्दू का आकार है, परन्तु भीतर गूदा, बीज, कुछ भी नहीं है । तुम्हें देखा, मानो घूँघट डालकर कोई चला जा रहा है ।’
(क्रमशः)

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