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*सारों के सिर देखिये, उस पर कोई नांहि ।*
*दादू ज्ञान विचार कर, सो राख्या मन मांहि ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ पीव पहिचान का अंग)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*राजर्षि परिचय*
*मूल छप्पय-*
*नारायण से विधि भयो, विधि तैं स्वायंभुव मनु ।*
*स्वायंभुव मनु के प्रियव्रत, तासु के अगनीधर गनु१ ॥*
*अगनीधर के नाभि, जिनहें२ रिझयो करतारा ।*
*तासु पछोपैं३ प्रकट, ऋषभदेव सु अवतारा ॥*
*ऋषभदेव के शत४ प्रकट,*
*जन राघव दीरघ भरत पिख५ ।*
*दश क्षिति-भुज६ भये नव योगेश्वर,*
*अवर इक्यासी राज रिष ॥५३॥*
भगवान् नारायण के नाभि-कमल से ब्रह्मा उत्पन्न हुये । ब्रह्मा से स्वायंभुव मनु हुये, स्वायंभुव मनु से प्रियव्रत, प्रियव्रत से राजर्षियों में गिनने१ योग्य अग्निधर,
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अग्निधर से जिनने२ सृष्टिकर्ता परमेश्वर को भक्ति द्वारा प्रसन्न किया वे नाभि हुये, नाभि के पीछे ऋषभदेव अवतार प्रकट हुये । ऋषभदेव के सौ४ पुत्र हुये, राघवदासजी कहते हैं यह पुराणों के द्वारा देखा गया है, उनमें बड़े भरत थे । सौ में से दश तो राजा६ हुये, नव योगेश्वर बनगये और इक्यासी राजर्षि हुये ।
(क्रमशः)

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