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स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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(“सप्तमोल्लास” ४३/४५)
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*हुगली बंद्र देस चढि आवै,*
*राजा प्रजा सब चढि धावे ।*
*मांनो नांही एक हुं बाता,*
*उपजी पक्ष इहै मम गाता ॥४३॥*
हुगली बन्दर देश की राजा प्रजा व अन्य सब देश भी चढकर आयेगा तो भी इस बन में मृग मारने की बात मैं नहीं मानूंगा । क्योंकि इस बन के प्राणियों की रक्षा करने का पक्ष मेरे मन में दृढ़ता से उत्पन्न हो गया है । उसे कोई भी नहीं हटा सकता ॥४३॥
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*हुगली बन्दर देश का राजा*
*हुकम हमारा सब को माने,*
*राजा तेज कहा तूं जानै ।*
*हुगली बंदर देस सैतांन,*
*मानें नहीं तुम्हारी आन ॥४४॥*
फिर राजा ने कहा- हमारी आज्ञा तो सब मानते हैं किन्तु तुम बनवासी हो इससे राज तेज को जानते नहीं हो । हुगली बंदर देश के लोग बड़े शैतान हैं वे तुम्हारी बात नहीं मानेंगे ॥४४॥
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*छत्रपति हौं ताकौ राऊ,*
*हुक्म करत छिन में सब आऊ ।*
*हम सूं जुध तुं कैसे ठांनै,*
*ॠषि हो भोरौ कहा बखाने ॥४५॥*
मैं वहां का छत्रपति राजा हूं मेरी आज्ञा होते ही क्षणभर में सब आकर तुम्हारा बल नष्ट करके तुम्हारा दिमाग ठीककर देंगे । हमारे से तुम युद्घ कैसे कर सकोगे, तुम ॠषि होकर भी कैसी भोली बातें करते हो ॥४५॥
(क्रमशः)

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