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🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
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भाष्यकार - ब्रह्मलीन महामंडलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरणवेदान्ताचार्य । साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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(#श्रीदादूवाणी ~ काल का अंग २५ - ६९/७२)
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*॥काल चेतावणी॥*
*मूसा भागा मरण तैं, जहाँ जाइ तहाँ गोर ।*
*दादू स्वर्ग पयाल में, कठिन काल का शोर ॥६९॥*
यहुदियों के धर्म गुरु मूसा पैगम्बर मृत्यु के भय से अपने स्थान को छोड़ कर भाग गया और जहां जहां जाता है वहां पर उसके लिये कब्र खोदते हुए पुरुषों को देखकर पूछा कि आप लोग यह कब्र किस के लिये खोद रहे हो । तब उन्होंने कहा कि मूसा के लिये खोद रहे हैं । यह सुन कर मूसा साहिब बोले कि यह कब्र तो छोटी है मेरा शरीर लम्बा है । इतना कह कर कब्र को नापने के लिये उसमें प्रवेश कर लेटने लगे तो इतने में ही उनके प्राण चले गये । अतः भागने से मृत्यु टलती नहीं है । जो अजन्मा है उस पर मृत्यु का वश नहीं चलता अतः जन्माभाव के लिये यत्न करो ।
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*सब मुख मांही काल के, मांड्या माया जाल ।*
*दादू गोर मसाण में, झंखे स्वर्ग पयाल ॥७०॥*
यह संसार माया का जाल है । जो इसमें आ गया वह काल के मुख में ही स्थित है ऐसा मानना चाहिये । अतः स्वर्ग पाताल मृत्यु लोक के रहने वालों को यही सोचना चाहिये कि हम तो शमशान में ही बैठे हुए हैं । अर्थात् मरे हुए ही हैं । अतः भगवान् को भजना चाहिये । वह ही हमारा रक्षक है । लिखा है कि-
जिस प्रकार धन की इच्छा से धनवान् की स्तुति करता है वैसे ही यदि विश्वकर्ता भगवान् को भजे तो कौन बन्धन से मुक्त नहीं होगा ? यदि प्राणी अपने मस्तक पर बैठी हुई मृत्यु को याद रखे तो भोजन भी उसको अच्छा न लगे और भोगों की तो बात ही क्या है ।
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*दादू मड़ा मसाण का, केता करै डफान ।*
*मृतक मुर्दा गोर का, बहुत करै अभिमान ॥७१॥*
यह जीव सर्वदा मृत्यु के मुख में पड़ा हुआ भी शरीर जाति आदि का अभिमान किये बिना नहीं रहता । इसको लज्जा भी नहीं आती कि इस मरे मुर्दे शरीर का क्या अभिमान करता हूं और न भगवान् को ही भजता हैं । अतः नीच है । क्योंकि मृत्यु के मुख में पडा हुआ अपने को देखकर भी अभिमान करता है और भगवान् को नहीं भजता । अतः सभी को भगवान् का भजन करना चाहिये । लिखा है कि-
कितने ही धनहीन मनुष्य को नीच कहते हैं । कितने ही गुणहीन को जघन्य बतलाते हैं । लेकिन सकल शास्त्रों तथा वेद के विशेषज्ञ व्यास मुनि कहते हैं कि जो नारायण का भजन नहीं करता । वह सबसे नीच है ।
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*राजा राणा राव मैं, मैं खानों सिर खान ।*
*माया मोह पसारै एता, सब धरती आसमान ॥७२॥*
जीव के अहंकार को दिखला रहे हैं श्री दादू जी महाराज । मैं राजा हूं । राजा ही नहीं राजाओं के जो राजा हैं उनका भी मैं राजा हूँ । अधिक क्या कहें, सभी महापुरुषों का भी मैं शिरोमणि हूं और जीव माया मोहित होकर स्वर्ग पाताल आदि राज्यों को प्राप्त करने की अभिलाषा करता है । परन्तु कभी यह विचार नहीं किया कि मैं तो काल का ग्रास हूं और न कभी नारायण को ही भजता हूं । लिखा है कि-
बड़े परिश्रम से सारी पृथ्वी का भ्रमण किया विद्वानों से विवाद करने के लिये विद्या पढ़ी । बड़े-बड़े राजाओं के मान भंग करने के लिये उन से परिचय किया तथा कमल के समान सुन्दर नेत्र वाली स्त्रियों के मुखारविन्द को खूब देखा परन्तु यह नहीं देख सका कि मैं तो कालग्रास हूं । इसी कुत्सित ज्ञान के कारण ही मैं नारायण का भजन नहीं कर सका ।
(क्रमशः)

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