मंगलवार, 19 जनवरी 2021

*१२. चितावणी कौ अंग ~ २५/२८*

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*श्रद्धेय श्री महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ Premsakhi Goswami*
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*१२. चितावणी कौ अंग ~ २५/२८*
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साध सकल सुख पाइ तहँ, पिवै अमीरस नूर ।
कहि जगजीवन सहज घर, बाजै अनहद तूर५ ॥२५॥
{५. तूर=तूर्य(=विविध वाद्य तन्त्र)}
संतजगजीवन जी कहते हैं कि परमात्मा के घर में सभी साधु जन सुखी होते हैं, और आनंदरस का पान करते हैं वहां ही अनहद ध्वनि सुनाई देती है ।
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बाजै अनहद नूर जहां, जहां निरंजन राइ ।
कहि जगजीवन मगन ह्वै, गोबिन्द के गुन गाइ ॥२६॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि जहां अनहद ध्वनि सुनायी देती है वहां ही प्रभु है यह प्रभु के होने के संकेत है इसलिए हे जीव वहाँ ही मग्न होकर प्रभु का गुणगान करें ।
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चित चितावै चेत नर, चितावणि६ चित राख ।
कहि जगजीवन देखि ले, सब साधन की साख ॥२७॥
{६. चितावणि=चेतावनी(संकट का संकेत)} 
संतजगजीवन जी कहते हैं कि प्रभु बार बार चेत करते है कि है जीव सावधान हो,हमेशा यह चेतावनी चित में रखें और सभी साधुजन भी यह ही कहते हैं ।
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कहि जगजीवन बिरह बिन, यहु तन चिता समांन ।
प्रेम भगति रस रांम बिन, लहै न निहचल ग्यांन ॥२८॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि प्रेम में विरह के बिना यह शरीर चिता के समान है प्रेम भक्ति व राम स्मरण के बिना यह निश्चल ज्ञान नहीं पा सकता ।
(क्रमशः)

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