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🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
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भाष्यकार - ब्रह्मलीन महामंडलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरणवेदान्ताचार्य । साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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(#श्रीदादूवाणी ~ शूरातन का अंग २४ - ८०/८३)
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*॥ विनती ॥*
*दादू कहै- जे तूं राखै सांइयां, तो मार सकै ना कोइ ।*
*बाल न बांका कर सकै, जे जग बैरी होइ ॥८०॥*
जिस भक्त की भगवान् रक्षा करना चाहते हैं, उसको कौन मार सकता है । सारे जगत् के रूठ जाने पर भी उसका कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता । मारना तो दूर रहा ।
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*दादू राखणहारा राखै, तिसे कौन मारै ।*
*उसे कौन डुबोवे, जिसे सांई तारै ॥*
*कहै दादू सो कबहूँ न हारै, जे जन सांई संभारै ॥८१॥*
जिसकी प्रभु रक्षा करते हैं, उसको मौन मार सकता है । जिसको प्रभु तारते हैं उसको संसार में कौन डूबो सकता है । जिसको प्रभु विजयी बनाना चाहते हैं उसको कौन शत्रु हरा सकता है ।
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*निर्भय बैठा राम जप, कबहूँ काल न खाइ ।*
*जब दादू कुंजर चढै, तब सुनहाँ झख जाइ ॥८२॥*
हाथी पर बैठे हुए पुरुष को कुत्ता भौंक भौंक कर चला आता है । उस हाथी की कुत्ता भी हानि नहीं कर सकता है । ऐसे ही जो निर्भय होकर राम नाम जपता है तो काल भी उसका क्या कर सकता है ?
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*कायर कूकर कोटि मिलि, भौंके अरु भागैं ।*
*दादू गरवा गुरुमुखी, हस्ति नहीं लागैं ॥८३॥*
सैकड़ों पामर पुरुष कुत्ते की तरह ज्ञानी भक्त की निन्दा करते हैं तो करो, इससे भक्त की कुछ हानि नहीं होती है । भक्त उनके वचनों को सुनते हुए भी नहीं सुनता, न दुःख ही मानता, न क्रोध ही करता । जैसे हाथी के पीछे कितने ही कुत्ते भौंके, पर वह हाथी कभी कुछ भी नहीं कहता । जीवन्मुक्तिविवेक में-
ज्ञानी महात्मा न किसी की निन्दा स्तुति करता, न किसी के कर्मों को छूता है न ज्यादा बोलता, किन्तु सर्व समान ही रहता है । क्रोधी के प्रति क्रोध नहीं करता किन्तु मीठा ही बोलता है तथा अतिवादों को सहन करता है किसी का अपमान नहीं करता ।
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॥ इति शूरातन का अंग का पं. आत्माराम स्वामी कृत भाषानुवाद समाप्त ॥२४॥
(क्रमशः)

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