शनिवार, 2 जनवरी 2021

*ब्रह्म क्या वस्तु है*

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*दादू निर्मल शुद्ध मन, हरि रंग राता होइ ।*
*दादू कंचन कर लिया, काच कहै नहीं कोइ ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ मन का अंग)*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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“जैसे जिस चीज से मट्ठा होता है, उसी से मक्खन भी होता है । अतएव मट्ठे का ही मक्खन और मक्खन का ही मट्ठा कहना चाहिए । बड़ी कठिनाइयों से मक्खन उठा लेने पर(अर्थात् ब्रह्मज्ञान होने पर) देखोगे, मक्खन रहने से मट्ठा भी है; जहाँ मक्खन है वहीँ मट्ठा है । ब्रह्म है, इस ज्ञान के रहने से जीव, जगत् चतुर्विशति तत्त्व भी हैं ।
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“ब्रह्म क्या वस्तु है, यह कोई मुँह से नहीं कह सकता । सब वस्तुएँ जूठी हो गयी हैं, (अर्थात् मुँह से कही जा चुकी हैं) परन्तु ब्रह्म क्या है, यह कोई मुंह से नहीं कह सका, इसीलिए वह जूठा नहीं हुआ । यह बात मैंने विद्यासागर से कही थी । विद्यासागर सुनकर बड़े प्रसन्न हुए ।
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“विषयबुद्धि का लेशमात्र रहते भी यह ब्रह्मज्ञान नहीं होता । कामिनी-कांचन का भाव जब मन में बिलकुल न रहेगा, तब होगा । पार्वतीजी ने पर्वतराज से कहा, ‘पिताजी, अगर आप ब्रह्मज्ञान चाहते हैं तो साधुओं का संग कीजिए ।’
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क्या श्रीरामकृष्ण के कहने का तात्पर्य यही है कि मनुष्य चाहे संसारी हो या संन्यासी, कामिनी-कांचन में मग्न रहने पर उसे ब्रह्मज्ञान नहीं होता ?
श्रीरामकृष्ण फिर मुखर्जी से कह रहे हैं-
“तुम्हारे धन-सम्पत्ति है फिर भी तुम ईश्वर को भी पुकारते हो, यह बहुत अच्छा है । गीता में है – जो लोग योगभ्रष्ट हो जाते हैं वही भक्त होकर धनी के घर जन्म लेते हैं ।”
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मुखर्जी(अपने मित्र से सहास्य) – “शुचीनां श्रीमतां गेहे योगभ्रष्टोऽभिजायते ।”
श्रीरामकृष्ण – वे चाहे तो ज्ञानी को संसार में भी रख सकते हैं । उन्ही की इच्छा से यह जीव-प्रपंच हुआ है । वे इच्छामय हैं ।
मुखर्जी(सहास्य) – उनकी फिर कैसी इच्छा ? क्या उन्हें भी कोई अभाव है ?
श्रीरामकृष्ण - इसमें दोष ही क्या है ? पानी स्थिर रहे तो भी वह पानी है और जीव-जगत क्या मिथ्या है ? तरंगें उठने पर भी वह पानी ही है ।
“साँप चुपचाप कुण्डली बाँधकर बैठा रहे, तो भी वह साँप है और तिर्यग्-गति हो, टेढ़ा-मेढ़ा रेंगने से भी वह साँप ही है । 
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“बाबू जब चुपचाप बैठे रहते हैं, तब वे जो मनुष्य हैं, वही मनुष्य वे उस समय भी हैं जब वे काम करते हैं ।
“जीव-प्रपंच को अलग कैसे कर सकते हो ? इस तरह वजन तो घट जाएगा ! बेल के बीज और खोपड़ा निकाल देने से पूरे बेल का वजन ठीक नहीं उतरता ।
“ब्रह्म निर्लिप्त है । सुगन्ध और दुर्गन्ध वायु से मिलती है, परन्तु वायु निर्लिप्त है । ब्रह्म और शक्ति अभेद हैं । उसी आद्याशक्ति से जीव-प्रपंच बना है ।”
(क्रमशः)

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