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स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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(“षष्टमोल्लास” ९४/९६)
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*राणीयों को अभय वरदान*
*तुम्हैं कलियुग कदे न व्यापे,**हरि भक्त न से सब ही कांपे ।*
*जे तुम्हरे संसै यहु होई,**ल्यो हरि ध्यान मुक्ति अब सोई ॥९४॥*
स्वामी दादू जी महाराज ने कहा तुम्हें कलियुग कभी नहीं व्यापेगा । हरि भक्तों के विपरीत कार्य करने से सभी ईश्वर के भय से कांपते है । यदि तुमको इसमें कोई संशय हो तो हरि ध्यान में वृति लगावो उससे तुमको अब अर्थात् शरीर में रहते ही मुक्ति प्राप्त हो सकती है । रही खान पान की बात सो भी ठीक हो जायेगा ॥९४॥
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*दादूजी ने राणीयों को डिब्बी दी*
*हुकम करत डिब्बी आई, हरि जी रिद्घि दई सुख दाई ।*
*साहिब रिद्घि दई तुम तांई, सकल कामना याकै मांहि ॥९५॥*
श्री दादूजी के इतना कहते ही वहां एक डिबिया आ गई । वह परमात्मा ने ही भेजी थी और ॠद्घि रूपी थी । वह सुखदाता ॠद्घि रूप डिबिया भक्तों के भूख प्यास रूप कार्य की सिद्घि के लिये भेजी थी । यह सब प्रकार की कामनाओं को पूर्ण करने वाली है ॥९५॥
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*इस डिब्बी में नाना प्रकार के व्यंजन मिलेंगे*
*वारपार या को नहीं कोई, नाना व्यंजन देई रसोई ।*
*सकल विश्व हूं भोजन पावे, डीबी अंत तऊ नहीं आवे ॥९६॥*
यह नाना व्यंजन युक्त भोजन तुमको देती रहेगी और जितना चाहो उतना ही देती रहेगी, इसका बार पार नहीं है । यदि सारा संसार भी भोजन प्राप्त करना चाहे तब भी इस डिबिया में अन्न समाप्त नहीं होगा ॥९६॥
(क्रमशः)

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