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🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
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भाष्यकार - ब्रह्मलीन महामंडलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरणवेदान्ताचार्य । साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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(#श्रीदादूवाणी ~ काल का अंग २५ - ३९/४२)
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*दादू अमृत छाड़ कर, विषय हलाहल खाइ ।*
*जीव बिसाहै काल को, मूढा मर मर जाइ ॥३९॥*
यह मनुष्य बड़ा ही मूर्ख है, जो हरि भजन अमृततुल्य है उस को छोड़ कर विषय भोग रूपी हालाहल विष का पान करता है । स्वयमेव विषयों के द्वारा अपनी मृत्यु को खरीद कर बार-बार मर कर लोकान्तरों में जाता है । लिखा है कि-
विषय ही विष माने गये हैं । विष, विष नहीं माना गया है क्योंकि विष खाने वाला एक बार ही मरता है और विषय भोगने वाले जन्म जन्मान्तरों में मरते ही रहते हैं । भागवत में-अनेक जन्मों के बाद अर्थ काम मोक्ष का देने वाला यह अनित्य शरीर मिला है और यह बहुत दुर्लभ है । अतः पुरुष को उचित है कि जब तक मृत्यु नहीं आती उससे पहले ही कल्याण के लिये साधन कर लेना चाहिये । क्योंकि विषय तो सब योनियों में सभी को प्राप्त होते ही रहते हैं ।
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*निर्मल नाम विसार कर, दादू जीव जंजाल ।*
*नहीं तहाँ तैं कर लिया, मनसा मांहीं काल ॥४०॥*
यह जीव प्रभु के निर्मल नाम को भुलाकर अपने मन में नानाकार प्रपञ्च की कल्पना करके सकल कल्पनाओं से अतीत ब्रह्म में भी जगत् का आरोप कर लिया और अपने ही काल्पनिक प्रपञ्च के कारण सुखी दुखी हो रहा है । ज्ञान दृष्टि से विचार करने पर जगत् है ही नहीं ।
योगवासिष्ठ में लिखा है कि- अध्यारोप दृष्टि से अनन्त जगत् सर्वत्र सर्वदा चित् सत्ता से भासित हो रहा है । उसका अणु मात्र भी अपलाप नहीं कर सकते । अपवाद दृष्टि से देखने पर चित् सत्ता के अलावा जगत् का ब्रह्म में समर्थन नहीं कर सकते ।
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*सब जग छेली, काल कसाई, कर्द लिये कंठ काटै ।*
*पंच तत्त्व की पंच पंसुरी, खंड-खंड कर बांटै ॥४१॥*
यह जीव बकरी के सदृश है । काल उसको मारने वाला कसाई है । कर्म फल ही शस्त्र है । दिन रात दो हाथ हैं । आयु कंठ है, पंच भूतों से उत्पन्न पांच ज्ञानेन्द्रियों की वृत्ति रूप पंख पंसलिया हैं । अतः कसाई दिन रात रूप हाथों से कर्मफल रूपी शस्त्र धारण करके आयु रूपी कंठ काट रहा है । पंच ज्ञानेन्द्रियों की पांचवृत्तिरूप पंसलिया को काट-काट कर विषय रूप ग्राहकों को दे रहा है । अतः काल पर विजय पाने के लिये यत्न करना चाहिये ।
महाभारत में- ब्रह्म प्राप्ति के लिये यम नियमादिकों का पालन करते हुए चिदाभास रूप जीव का ज्ञान के द्वारा प्रविलापन कर दो । अर्थात् अपवाद कर दो । आगम वेद शास्त्र गुरु वाक्यों में श्रद्धावान् होकर इस अनन्त काल को जीत लों ।
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*काल झाल में जग जलै, भाज न निकसै कोइ ।*
*दादू शरणैं साच के, अभय अमर पद होइ ॥४२॥*
कालाग्नि की ज्वालामालाओं से सारा जगत् जल रहा है । फिर भी कोई प्राणी भगवान् का भजन नहीं करता । यदि कोई परमात्मा की शरण में चला जाये तो वह अमर हो जाता है । उसको काल का भी भय नहीं रहता । अर्थात् काल के गाल में न जाकर मुक्त हो जाता है ।
श्रीभागवत में कहा है कि- जिसके नाम श्रवण मात्र से मनुष्य निर्मल हो जाता है । उन्हीं भगवान् के चरणकमलों के जो दास हैं उन के लिये कौन सा कर्तव्य शेष रह जाता है अर्थात् वे कृतकृत्य हो जाते हैं ।
(क्रमशः)
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