गुरुवार, 14 जनवरी 2021

= *स्वाँग साँच निर्णय का अंग १३३ (५/८)* =

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*दादू हौं बलिहारी सुरति की, सबकी करै सँभाल ।*
*कीड़ी कुंजर पलक में, करता है प्रतिपाल ॥*
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*श्री रज्जबवाणी*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*स्वाँग साँच निर्णय का अंग १३३* 
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करनी१ करि सरभरि२ नहीं, कथा कबीर कहाय । 
रज्जब माने कौन विधि, बालद उतरी आय ॥५॥
कथा तो कबीर के समान२ कहता है किन्तु कर्तव्य१ में तो कबीर के समान नहीं है, तब कबीर के समान कैसे माना जायगा ? कबीर के घर पर तो भगवान ने बालद उतारी थी । कबीर ने खादी का सभी थान एक साधु के मांगने पर उसे दे दिया था, फिर पास कुछ न होने से वन में जा बैठे थे तब पीछे से भगवान बालद लाये थे और कबीर की माता के देहान्त के समय भी उसके भण्डारे के लिये बालद का आना सुना जाता है । 
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इक सांभर अरु शाहपुरा, दादू देखें दोय । 
दरस दशा सरभरि घणे, परि कला कौन पै होय ॥६॥
सांभर में बिलन्दखान ने बंदीगृह में बंद किये तब दादूजी का एक शरीर बंदीगृह में और एक बाहर सबने देखा था । शाहपुरा के तिलोक शाह के यहां एक तख़ पर और एक मार्ग में दो शरीर दादूजी के तिलोकशाह ने देखे थे । दादूजी के भेष की समानता तो बहुत कर लेते हैं परन्तु उक्त कार्य रूप कला किससे हो सकती है ? सांभर और शाहपुरे दो दो शरीर दर्शन की कथायें छप्पया ग्रन्थ के स्वांग साधु निर्णय अंग के पांचवे छप्पया की टीका में देखो । 
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जहाज कढ्या१ चीरी२ फिरी३, गज सु रहे मुँह मोड़ि । 
दादू दीन दयालु के, रज्जब परचे४ कोड़ि ॥७॥
एक जहाज समुद्र में डूब रहा था, हिंगोली और कपिल नामक दो संतों के कहने से उसके यात्रियों ने रक्षार्थ दादूजी से प्रार्थना की तब दादूजी ने उस जहाज को तारा१ था । सांभर में सांभर की सरकार और प्रजा में एक पत्र२ लिखा था - "जो दादू के जायेगा उसे प्रतिशत पांच रुपये दण्ड देना होगा ।" उसके अक्षर बदल३ गये थे - "जो दादू के न जायेगा उसे प्रतिशत पांच रुपये दण्ड देना होगा ?" सांभर के काजियों ने और खाटू गांव में बिकानेर भरोटिये राव ने दादूजी पर मतवाले हाथी छोड़े थे, दोनों ही स्थानों के हाथी दादूजी के चरण छू कर शाँति पूर्वक लौट गये थे । इस प्रकार दीन दयालु दादू ही शक्ति के कोटिन परिचय४ हैं । 
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बांछे१ अण२ बांछे करी, सांई सन्त सहाय । 
रज्जब देख्या वस्तु बल, मिथ्या कही न जाय ॥८॥
सहायता की इच्छा१ करने पर तथा न२ करने पर भी प्रभु ने संतों की सहायता की है । संतों में जो वस्तु बल देखा गया है, उसकी कथा मिथ्या नहीं जा सकती । 
(क्रमशः)

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