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*#पं०श्रीजगजीवनदासजीकीअनभैवाणी*
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*श्रद्धेय श्री महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ Premsakhi Goswami*
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*११. भगति संजीवनी कौ अंग ~ ७३/७६*
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एक अनभै८ एक बेद विधि९, एक जोतिग१० एक जोग११ ।
कहि जगजीवन रांमजी, एक भगति एक भोग१२ ॥७३॥
(८.अनभै=अनुभव साधना) {९. बेद विधि=वैदिक कर्मकाण्ड(यज्ञ आदि)} (१०. जोतिग=ज्यौतिष शास्त्र) (११. जोग=योगशास्त्र) (१२. भोग=सांसारिक विषयभोगों में आसक्त पुरुष)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि संसार में परमात्मा को पाने के कितने ही मार्ग हैं यथा.. अनुभव, वेदोक्त, ज्योतिष, योग, इन सब का सार रुप है भक्ति है । और संसार में रमने का विषयभोग ।
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कहि जगजीवन कमाई, सुरति समाई साथ ।
भगति निरंतर जमाई, हरि गुण आये हाथ ॥७४॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि सच्ची कमाइ तो ध्यान है व ध्यान के साथ भक्ति निरंतर दृढ रहे तो परमात्मा की कृपा मिलती है ।
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कहि जगिवन ह्रिदा थैं, रांम हि बिसर न जाइ ।
कलिमल अघ हरि हरन कूं, अबिगति परसै आइ ॥७५॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हृदय से राम नाम कभी दूर न हो फिर कलियुग के पाप हारी हरि की शरण में यह जीव पहुंच ही जायेगा ।
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झूंठ अझूंठ मन पूठि१३ दे, रुठि रांम रस लागि ।
कहि जगजीवन रांम भजि, चित भ्रम चित तैं त्यागि ॥७६॥
(१३. पूठि=पीछे कर)
संतजगजीवन जी कहते कि असत्य सत्य अथवा शुद्ध अशुद्ध से परे उठे व प्रभु सिमरण में रत हो । है जीव सब सशंय दूर कर सिमरण करें ।
(क्रमशः)
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