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स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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(“सप्तमोल्लास” ७/९)
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*जीतना देवलोक में बाजा*
*देव लोक में जेते बाजा,*
*सो सब धरयाजू जैमल साजा ।*
*दुदुंभी भेरी, रणसींगे, नाला,*
*मृदंग पखावज बाजे बाजा ॥७॥*
देवलोक में जितने बाजे होते हैं वे सभी साज बाज धराजु जैमल के साथ थे । वे थे दुंदभी, भेरी, रणसींगे, नाला, मृदंग, पखावज आदि ॥७॥
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*अनहद के जैसे स्वर*
*घंटा, झालरि, अति झुणकारा,*
*जंत्र कला, संगीत अपारा ।*
बेनी भेरि, संख धुनि होई,*
*राइग्रगी, अतसुर सोई ॥८॥*
घंटा, झालर, झुणकारा, बेजु, भेरी, संख, सितार आदि यंत्र संगीत संबन्धी, अनेक प्रकार के बाजों के बजने से गहरा कोलाहल हो रहा था ॥८॥
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*बरगू, ढोल, दमामां बाजै,*
*कोतूहल गहरे सुर गाजै ।*
*करे उछाह अति मंगल चारा,*
*आतुर संत चलें जो सारा ॥९॥*
बरगूद्व ढोल, दमामां सितार आदि यंत्र वाद्यों के बजने से अति घ्वनि व कोतूहल हो रहा था । इस प्रकार संत, राजा, प्रजा सभी अति उत्साह से मंगलाचार करके चले ॥९॥
(क्रमशः)
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