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स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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(“सप्तमोल्लास” ३१/३३)
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*राजा देख्या रूप तमासा,*
*कष्ट देखिकर लागी त्रासा ।*
*सुनौ तुम अबै पूरब करणी,*
*निशचे ज्ञान बडो निस्तरणी ॥३१॥*
राजा ने स्वरूप खेल देखा तो उसके मन में भय जन्य कष्ट हुआ । फिर स्वामी दादूजी ने अब तुम अपने पूर्व कर्मों को सुनो जिससे निश्चय ही संसार सागर से तारने वाला ज्ञान तुम्हारे हृदय में बढेगा ॥३१॥
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*श्री दादूजी पूर्व अवतार की कथा सुना रहे हैं*
*येक अवतार की कथा सुनाऊं,*
*संस्कार सब तुम्हारा गांऊ ।*
*द्वापर विशै जु येक रिशीवर,*
*ज्ञान ध्यान सवधर्म कवीवर ॥३२॥*
तुम्हारे को एक अवतार की कथा सुनाता हूं उस अवतार में तुम्हारे संस्कारों को भी कहता हूं । द्वापर में एक ध्यान, ज्ञान, धर्म आदि के ज्ञाता कवीवर ॠषिवर थे ॥३२॥
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*रहै इकंति आरणि के मांहीं,*
*लोक मरम कोई जाने नांहीं ।*
*सूके पत्रों का करे अहारू,*
*मुदितवंत रहै मग्न करारू ॥३३॥*
वे एक बन में एकांत स्थान पर रहते थे । वे कैसे रहते थे इस मर्म रहस्य को कोई भी नहीं जानता था । वे सूखे पत्तों को खाकर प्रसन्न रहते थे, प्यास लगने पर नदी का पानी पी लेते थे, उनका मन ब्रहमानंद के रस के उपयोग से मस्त रहता था ॥३३॥
(क्रमशः)

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