बुधवार, 6 जनवरी 2021

काल का अंग २५ - १२/१६

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🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
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भाष्यकार - ब्रह्मलीन महामंडलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरणवेदान्ताचार्य । साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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(#श्रीदादूवाणी ~ काल का अंग २५ - १२/१६)
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*सब ही दीसैं काल मुख, आपा गह कर दीन्ह ।*
*विनशै घट आकार का, दादू जे कुछ कीन्ह ॥१२॥*
इस संसार में सभी प्राणी अहंकार से ग्रस्त होकर स्वयं ही काल के मुख में पड़े हुए दीख रहे हैं और नष्ट हो रहे हैं । क्योंकि अहंकार ही काल है । इस शरीर के नाश से, अहंकार से जो किया हुआ संसार है, वह भी नष्ट हो जाता है ।
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*काल कीट तन काठ को, जरा जन्म को खाइ ।*
*दादू दिन दिन जीव की, आयु घटंती जाइ ॥१३॥*
जैसे घुण काठ को खाकर जीर्ण कर देता है । वैसे ही कालरुपी कीड़ा जरा अवस्था के द्वारा इस शरीर को जन्म से ही खा रहा है और आयु प्रतिक्षण घटती जा रही है । यह जीर्ण शीर्ण शरीर भी आयु के अन्त में नष्ट हो जायेगा । लिखा है कि यह शरीर सौ जगह जोड़ा हुआ है और जर्जरित होने से अवश्य गिरेगा । हे मूढ इन औषधियों के सेवन से क्यों दुःख पा रहा है । भगवान् श्री कृष्ण का निरामय जो नाम है उसको क्यों नहीं रटता है ?
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*काल गिरासे जीव को, पल पल श्‍वासैं श्‍वास ।*
*पग पग मांहि दिन घड़ी, दादू लखै न तास ॥१४॥*
यह काल जीव को प्रतिदिन प्रतिपल पग पग पर श्वास श्वास के साथ ग्रस रहा है । फिर भी जीव जानता नहीं यह उसका प्रमाद है । 
महाभारत में- यह काल प्राणियों को पका पका कर खा रहा है । सबके सो जाने पर भी काल सदा जागता रहता है । क्योंकि काल का अतिक्रमण करना बड़ा ही कठिन है और यह एक एक रात के बीतने के साथ ही आयु भी अल्प होती जा रही है । अतः साधक को सावधान रहना चाहिये ।
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*पाव पलक की सुधि नहीं, श्‍वास शब्द क्या होइ ।*
*कर मुख मांहि मेलतां, दादू लखै न कोइ ॥१५॥*
चलते बैठते निमेष उन्मेष लेते हुए श्वास लेते सुनते बोलते खाते पीते न मालुम क्या हो जाय यह जीव को पता नहीं है । क्योंकि काल की गति को कोई नहीं जान सकता । अतः सदा हरि को भजते रहो ।
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*दादू काया कारवीं, देखत ही चल जाइ ।*
*जब लग श्‍वास शरीर में, राम नाम ल्यौ लाइ ॥१६॥*
यह शरीर क्षण भर में ही नष्ट होने वाला है । क्योंकि सबके देखते-देखते ही चला जाता है । अतः जब तक इस शरीर में श्वास चलता है, तब तक राम नाम का सबको स्मरण करना चाहिये ।
(क्रमशः)

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